आम रसीले भोले-भाले रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

आम रसीले भोले-भाले

रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

पकने को तैयार खड़े हैं! 
शाखाओं पर लदे पड़े हैं!!

झूमर बनकर लटक रहे हैं! 
झूम-झूम कर मटक रहे हैं!! 

कोई दशहरी कोई लँगड़ा! 
फजरी कितना मोटा तगड़ा!! 

बम्बइया की शान निराली! 
तोतापरी बहुत मतवाली!!

कुछ गुलाब की खुशबू वाले! 
आम रसीले भोले-भाले!!

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