महादेवी वर्मा

जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जन्म 24 मार्च सन् 1907 को (भारतीय संवत के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा संवत 1964 को) प्रात: ८ बजे फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश के एक संपन्न परिवार में हुआ। इस परिवार में लगभग २०० वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद महादेवी जी के रूप में पुत्री का जन्म हुआ था। अत: इनके बाबा बाबू बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी- महादेवी माना और उन्होंने इनका नाम महादेवी रखा । महादेवी जी के माता-पिता का नाम हेमरानी देवी और बाबू गोविन्द प्रसाद वर्मा था। श्रीमती महादेवी वर्मा की छोटी बहन और दो छोटे भाई थे। क्रमश: श्यामा देवी (श्रीमती श्यामा देवी सक्सेना धर्मपत्नी- डॉ० बाबूराम सक्सेना, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष एवं उपकुलपति इलाहाबाद विश्व विद्यालय) श्री जगमोहन वर्मा एवं श्री मनमोहन वर्मा। महादेवी वर्मा एवं जगमोहन वर्मा शान्त एवं गम्भीर स्वभाव के तथा श्यामादेवी व मनमोहन वर्मा चंचल, शरारती एवं हठी स्वभाव के थे।

महादेवी वर्मा के हृदय में शैशवावस्था से ही जीव मात्र के प्रति करुणा थी, दया थी। उन्हें ठण्डक में कूँ कूँ करते हुए पिल्लों का भी ध्यान रहता था। पशु-पक्षियों का लालन-पालन और उनके साथ खेलकूद में ही दिन बिताती थीं। चित्र बनाने का शौक भी उन्हें बचपन से ही था। इस शौक की पूर्ति वे पृथ्वी पर कोयले आदि से चित्र उकेर कर करती थीं। उनके व्यक्तित्व में जो पीड़ा, करुणा और वेदना है, विद्रोहीपन है, अहं है, दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता है तथा अपने काव्य में उन्होंने जिन तरल सूक्ष्म तथा कोमल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की है, इन सब के बीज उनकी इसी अवस्था में पड़ चुके थे और उनका अंकुरण तथा पल्लवन भी होने लगा था।

लेखन शैली

महादेवी वर्मा (26 मार्च, 1907 — 11 सितंबर, 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ मानी जाती हैं। उन्हेंआधुनिक मीराबाई भी कहा गया है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।

उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वे भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं।

प्रमुख कृतियाँ
क्रम संख्या कविता का नाम रस लिंक
1

जो तुम आ जाते एक बार

करुण रस
2

तेरी सुधि बिन क्षण क्षण सूना

शृंगार रस
3

मैं बनी मधुमास आली

शृंगार रस
4

फूल

शृंगार रस
5

जीवन, विरह का जलजात

शांत रस
6

अलि, मैं कण-कण को जान चली

अद्भुत रस
7

बया हमारी चिड़िया रानी

शांत रस
8

क्यों इन तारों को उलझाते

शृंगार रस
9

यह मन्दिर का दीप

अद्भुत रस
10

बताता जा रे अभिमानी

शांत रस
11

अश्रु यह पानी नहीं है

अद्भुत रस
12

जब यह दीप थके

अद्भुत रस
13

प्रिय चिरंतन है सजनि

शृंगार रस
14

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

शृंगार रस
15

दीपक अब रजनी जाती रे

अद्भुत रस
16

अलि अब सपने की बात

शांत रस
17

पथ देख बिता दी रैन

शृंगार रस
18

सजनि कौन तम में परिचित सा

शृंगार रस
19

शलभ मैं शपमय वर हूँ

शृंगार रस
20

क्या जलने की रीति शलभ

अद्भुत रस
21

मिटने क अधिकार

शांत रस
22

मेरा सजल मुख देख लेते

शृंगार रस
23

दीप मेरे जल अकम्पित

अद्भुत रस
24

तितली से

शांत रस
25

जाने किस जीवन की सुधि ले

शांत रस
26

माँ के ठाकुर जी भोले हैं

शांत रस
27

उर तिमिरमय घर तिमिरमय

शृंगार रस
28

वे मधु दिन

शृंगार रस
29

पूछता क्यों शेष कितनी रात

शृंगार रस
30

आओ, प्यारे तारो आओ

अद्भुत रस
31

कौन तुम मेरे हृदय में

शृंगार रस
32

धूप सा तन दीप सी मैं

शांत रस
33

क्या पूजन क्या अर्चन रे

शृंगार रस
34

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ

शृंगार रस
35

किन उपकरणों का दीपक

अद्भुत रस
36

स्वप्न से किसने जगाया

शांत रस
37

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

करुण रस
38

मैं नीर भरी दुःख की बदली

करुण रस
39

जाग तुझको दूर जाना

शांत रस
40

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या

शृंगार रस
41

जो मुखरित कर जाती थीं

शृंगार रस
42

मै अनंत पथ में लिखती जो

शांत रस
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