पन्‍द्रह अगस्‍त गिरिजाकुमार माथुर

पन्‍द्रह अगस्‍त

गिरिजाकुमार माथुर | शांत रस | आधुनिक काल

आज जीत की रात
पहरुए सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना

प्रथम चरण है नए स्‍वर्ग का
है मंजि़ल का छोर
इस जन-मन्‍थन से उठ आई
पहली रत्‍न हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन मुक्‍ता डोर
क्‍योंकि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर

ले युग की पतवार
बने अम्‍बुधि महान रहना
पहरुए, सावधान रहना!

विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्‍त दिशाएँ
आज प्रभंजन बन कर चलतीं
युग बन्दिनी हवाएँ
प्रश्‍नचिह्न बन खड़ी हो गईं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ

उठता है तूफान इन्‍दु तुम
दीप्तिमान रहना
पहरुए, सावधान रहना

ऊँची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन
उसकी छायाओं का डर है
शोषण से मृत है समाज
कमजोर हमारा घर है
किन्‍तु आ रही नई जि़न्‍दगी
यह विश्‍वास अमर है

जन गंगा में ज्‍वार
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए, सावधान रहना!

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com