आज है, कल हुई उर्मिलेश
आज है, कल हुई
उर्मिलेश | शांत रस | आधुनिक कालआज है, कल हुई, हुई, न हुई
छांव हर पल हुई, हुई, न हुई
एक पहेली है ज़िंदगी अपनी
क्या पता हल हुई, हुई, न हुई
देह का फ़लसफ़ा बताता है
कल ये संदल हुई, हुई, न हुई
जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है
उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई
ये नुमाइश तो चार दिन की है
फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई
मानकर घास रौंद मत इसको
कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई
जितना जी चाहे उतनी पी ले तू
फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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