शत-शत नमन उर्मिलेश

शत-शत नमन

उर्मिलेश | वीर रस | आधुनिक काल

मिटाकर शत्रु को जो मिट गये खुद आन की खातिर 
उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा !

जिन्होंने बर्फ में भी शौर्य की चिंगारियां बो दीं,
पहाड़ी चोटियों पर भी अभय की क्यारियां बो दीं
भगाकर दूर सारे गीदड़ों, सारे श्रृगालों को 
जिन्होंने सिंह वाले युद्ध में खुद्दारियां बो दीं .

अहर्निश जो बढ़े आगे विजय-अभियान की खातिर 
उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा !

शुरू से आज तक इतिहास यह देता गवाही है 
हमारी वीरता मृत्युंजयी है, शौर्य-ब्याही है 
अलग से वह न पत्थर है, न लोहा है, न शोला है,
सभी का सम्मिलित प्रारूप ,भारत का सिपाही है !

लुटाते प्राण तक जो देश की अभिमान के खातिर ,
उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा !

शहीदों की चिताएँ तो वतन की आरती सी हैं
उठीं लपटें किसी नागिन-सदृश फुफकारती –सी हैं 
चिताओं की बुझी हर राख गंगा-रेणु सी लगती
निहत्थी अस्थियाँ भी शस्त्र की छवि धारती-सी हैं

जिन्होंने दे दिया बलिदान हिंदुस्तान की खातिर,
उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा !

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