मै ना भूलूँगा संतोषानन्द

मै ना भूलूँगा

संतोषानन्द | शृंगार रस | आधुनिक काल

मै न भूलूँगा 
मै न भूलूँगी
इन रस्मों को, इन क़समों को, इन रिश्ते-नातों को

चलो जग भूलें, ख्यालों मे झूलें 
बहारो मे डोले, सितारों को छू लें
आ तेरी मै माँग सँवारूँ तू दुल्हन बन जाए
माँग से जो दुल्हन का रिश्ता मै न भूलूँगी... 

समय की धारा मे उमर बह जानी है
जो घड़ी जी लेंगे वही रह जानी है
मै बन जाऊँ साँस आख़िरी, तू जीवन बन जाए
जीवन से साँसो का रिश्ता मै न भूलूँगी 

गगन बनकर झूमे, पवन बनकर झूमे
चलो हम राह मोड़ें, कभी न संग छोड़ें
तरस चख जाना है, नज़र चख जाना है
कहीं पे बस जाएँगे, यह दिन कट जाएँगे
अरे क्या बात चली, वो देखो रात ढली
यह बातें चलती रहें, यह रातें ढलती रहें 

मै न भूलूँगा, मै न भूलूँगी...
 

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