चितवौ जी मोरी ओर मीराबाई

चितवौ जी मोरी ओर

मीराबाई | शृंगार रस | भक्तिकाल

तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं

मन के बड़े कठोर।

मेरे आसा चितनि तुम्हरी 

और न दूजी ठौर।

तुमसे हमकूँ एक हो जी 

हम-सी लाख करोर।।

कब की ठाड़ी अरज करत हूँ

अरज करत भै भोर।

मीरा के प्रभु हरि अबिनासी 

देस्यूँ प्राण अकोर।।

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