मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद संतोषानन्द

मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद

संतोषानन्द | शृंगार रस | आधुनिक काल

मेरी क़िस्मत में तू नहीं शायद
मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था
मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ

आज समझा हूँ प्यार को शायद
आज मैं तुझको प्यार करती हूँ
कल मेरा इंतज़ार था तुझको
आज मैं तेरा इंतज़ार करती हूँ

सोचता हूँ कि तेरी आँखों ने
क्यों सजाए थे प्यार के सपने
तुझसे माँगी थी एक ख़ुशी मैंने
तूने ग़म भी नहं दिए अपने

ज़िन्दगी बोझ बन गई अब तू
अब तो जीता हूँ और न मरता हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करता था
मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ

अब न टूटें ये प्यार के रिश्ते
अब ये रिश्ते सँभालने होंगे
मेरी राहों से तुझको कल की तरह
दुख के काँटे निकालने होंगे

मिल न जाए ख़ुशी, कि रस्ते में
ग़म की परछाइयों से डरती हूँ
मैं तुझे कल भी प्यार करती थी
मैं तुझे अब भी प्यार करती हूँ

दिल नहीं इख़्तियार में मेरे
जान जाएगी प्यार में तेरे
तुझसे मिलने की आस है आजा
मेरी दुनिया उदास है आजा

प्यार शायद इसी को कहते हैं
हर घड़ी बेक़रार रहता हूँ
रात-दिन तेरी याद आती है
रात-दिन इंतज़ार करता हूँ
 

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