जंगल उगने लगे सोम ठाकुर
जंगल उगने लगे
सोम ठाकुर | अद्भुत रस | आधुनिक कालकाली आँधी है लाल दिशाओं में
लो, जंगल उगने लगे है निगाहों में
गेरू के चित्र-रची दीवारों पर
गिर गया अंधेरा रोशनदानों से
दहशत डूबी संध्या का सन्नाटा
बोलने लगा सहमे दालानों से
फिर खड़ी तर्जनी मुँह तक आई है
खामोशी बिन्धने लगी कराहों में
चाँदी के फूल खिली आधी रातें
दीवाने आसेबों की हो बैठीं
लोहे की घाटी में उतरी राहें
अपना हर पारस पत्थर खो बैठीं
वह दुआ मान की दरगाहों से
जो मातम छाने लगा निकाह में
शोले बस्ती ने गोद ले लिए हैं
वे ज़हरीली फुलझड़ियाँ छूट गई
बहकी तितलियाँ स्वप्न पंखों वाली
अंगड़ाती हुई शिलायें टूट गई
फिर से ज्वालामुखियों के पते मिले
गुमसुम लोगो के अन्तर्दाहो में
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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