फटा ट्वीड का नया कोट नरेन्द्र शर्मा

फटा ट्वीड का नया कोट

नरेन्द्र शर्मा | शृंगार रस | आधुनिक काल

तुम्हें याद है क्या उस दिन की
नए कोट के बटन होल में,
हँसकर प्रिये, लगा दी थी जब 
वह गुलाब की लाल कली ?

फिर कुछ शरमा कर, साहस कर,
बोली थीं तुम- "इसको यों ही
खेल समझ कर फेंक न देना,
है यह प्रेम-भेंट पहली!" 

कुसुम कली वह कब की सूखी,
फटा ट्वीड का नया कोट भी,
किन्तु बसी है सुरभि ह्रदय में,
जो उस कलिका से निकली ! 
 

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