औंदू बोला प्रभुदयाल श्रीवास्तव

औंदू बोला

प्रभुदयाल श्रीवास्तव | अद्भुत रस | आधुनिक काल

मैंने एक सपना देखा है,
तुम दिल्ली जाने वाले हो,
किसी बड़े होटल में जाकर,
रसगुल्ले खाने वाले हो।


मैंने सपने में देखा है,
लल्लूजी फिर फेल हो गये,
इसी ख़ुशी में ओले बरसे,
बाहर रेलम ठेल हो गये।


मैंने सपने में देखा है,
मुन्नी की अम्मा आई है,
चाकलेट के पूरे पेकिट,
अपने साथ पाँच लाई है।


मैंने सपने में देखा है,
तुमने डुबकी एक लगाई,
और नदी में कूद-कूद कर,
उछल-उछल कर धूम मचाई।


मैंने सपने में देखा है,
तुम मेले में घूम रहे हो,
अच्छे-अच्छे फुग्गे लेकर,
बड़े मज़े से चूम रहे हो।


मैंने सपने में देखा है,
तुम बल्ले से खेल रहे हो
चौके वाली गेंद दौड़कर,
कूद-कूद कर झेल रहे हो।


मैंने सपने में देखा है,
भ्रष्टाचार समापन पर है,
बेईमानी सब हवा हो गई,
सच्चाई सिंहासन पर है।


औंदू बोला दादाजी से,
यों इतनी गप्पें देते हो,
किसी किराने की दुकान से,
चाकलेट क्यों न लेते हो।

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