उन मुस्कानों की बलि जाऊँ वृन्दावनलाल वर्मा

उन मुस्कानों की बलि जाऊँ

वृन्दावनलाल वर्मा | अद्भुत रस | आधुनिक काल

उन मुस्कानों की बलि जाऊँ
सती की चिता की दीपशिखा पर जो लहराती रहती हैं
निर्बल के कण-कण में भी जो ज्योति जगाती रहती है
बलिदानों की ध्वजा निरन्तर जो फ़हराती रहती है
उन बलिदानों से बल पाऊँ उन वरदानों से भर पाऊँ
उन मुस्कानों की बलि जाऊँ।

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