चीख़ अशोक वाजपेयी

चीख़

अशोक वाजपेयी | करुण रस | आधुनिक काल

यह बिल्कुल मुमकिन था
कि अपने को बिना जोखिम में डाले
कर दूँ इंकार
उस चीख़ से,
जैसे आम हड़ताल के दिनों में
मरघिल्ला बाबू, छुट्टी की दरख़्वास्त भेजकर
बना रहना चाहता है वफ़ादार
दोनों तरफ़।

अंधेरा था
इमारत की उस काई-भीगी दीवार पर,
कुछ ठंडक-सी भी
और मेरी चाहत की कोशिश से सटकर
खड़ी थी वह बेवकूफ़-सी लड़की।

थोड़ा दमखम होता
तो मैं शायद चाट सकता था
अपनी कुत्ता-जीभ से
उसका गदगदा पका हुआ शरीर।
आखिर मैं अफ़सर था,
मेरी जेब में रुपिया था, चालाकी थी,
संविधान की गारंटी थी।
मेरी बीबी इकलौते बेटे के साथ बाहर थी
और मेरे चपरासी हड़ताल पर।

चाहत और हिम्मत के बीच
थोड़ा-सा शर्मनाक फ़ासला था
बल्कि एक लिजलिजी-सी दरार
जिसमें वह लड़की गप्प से बिला गई।
अब सवाल यह है कि चीख़ का क्या हुआ?
क्या होना था? वह सदियों पहले
आदमी की थी
जिसे अपमानित होने पर
चीख़ने की फ़ुरसत थी।

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com