तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

हम यह नहीं चाहते कि हिन्दी केवल साहित्य सदन की मलिका बन जाएँ, ही यह चाहते कि हिन्दी का केवल सम्मान भर होता रहे, बल्कि यह चाहता हुँ कि 'हिन्दी जनमानस द्वारा स्वीकार्य रहें'
हिन्दी एक भाषा नहीं वरन् सम्पुर्ण राष्ट्र का चिंतन और चित्रण है|
यदि राष्ट्र को शरीर माना जाएं और उदर यानी पेट उसकी संस्कृति तो जिव्हा उसकी भाषा होगी, और जिव्हा को खराब कर दो, पेट खराब हो जाएगा, और पेट खराब मतलब पुरा शरीर बीमारियों की चपेट में....
सरल-सा व्याकरण है, जो अंग्रेजीयत ने किया | हमारी भाषा बिगाड़ दी, जिससे हमारी संस्कृति बिगड़ती चली जा रही है, एक दिन सम्पुर्ण राष्ट्र खत्म हो जाएगा |
आज हमारी भाषा पर राजभाषा ही सही परन्तु तंत्र के सुचारु गति से संचालन का स्त्रोत है...

आज दुर्भाग्य है इस राष्ट्र का कि यहाँ के प्रधानमंत्री जी *Make In India* योजना की शुरुआत करते है, क्या वे *भारत में निर्मित* शब्द का उपयोग नहीं कर सकते थे?
जिस संविधान प्रदत्त शक्तियों के कारण आप प्रधानमंत्री बनें हो, उन्ही शक्तियों ने हिन्दी को कम से कम राजभाषा का दर्जा तो दिया है, सरकारी तंत्र के कार्यों में तो कम से कम हिन्दी में उपयोग करियें....
शायद आपके इस कदम से गैर हिन्दीभाषियों के विरोध की नौक पर आप आ जाते पर क्या वे संविधान से बढ़कर है?

मैनें मेरे अब तक के जीवन में 5000 से ज्यादा पुस्तकें पड़ी है, सैकड़ो गीत सुने है, परन्तु आज भी मुझे *भारत का संविधान* और गीत में *राष्ट्रगान* से ज्यादा किसी पर गर्व नहीं हुआ....
कहीं दुर से भी *जन-गण-मन* का स्वर कानों तक पहुँच जाता है तो यकिन मानिएं अंग-अंग जागृत अवस्था में गर्वित हो जाता है...
संविधान से महत्वपुर्ण कुछ नहीं लगता,
आप तो राष्ट्रनायक की भूमिका में हो... आपसे अब क्या कहें?
हिन्दी एक सम्पुर्ण सत्य है... जो चेतना का गान अर्पण कर रही है...

हिन्दी गौरव गीत का गूंजन है, अभिमान है..
आज हम चाईना की बात करते है, उस राष्ट्र ने भी उसकी आजादी के बाद लगभग 20 वर्षों तक किसी बाहरी को प्रवेश नहीं दिया और आज भी चाइनीज माल पर लेखन चाईनीज भाषा में ही होता है....
यही चाईना का एकाधिकार है...
हम हिन्दुस्तानीयों का दिमाग और श्रम हमारा सर्वस्व है...क्या हम यह नहीं कर सकते??
मैं यह भी नहीं कहता कि हमें अग्रेजी नहीं पढ़ना चाहिए...क्योंकि एक भाषा को जान कर ही हम उस जगह की, राष्ट्र की तासिर , जनमत, परिवेश और संस्कृति के बारे में जान पाएंगे....परन्तु अपनी माँ को छोड़ कर कब तक हम परायों को माँ बनायेंगे?

होना तो हिन्दी का साम्राज्य और वैभव सबसे ज़्यादा क्योंकि चाइना के बाद विश्व के सर्वाधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र भारत है, किंतु राजनीति की गंदी चालों ने हिन्दी को महज भाल की बिंदी ही बना कर रख दिया|
मुझे 16 भाषाएँ आती है परन्तु मैं संवाद तो हिन्दी में ही करना पसंद करता हुँ....
हमें गर्व हमारी हिन्दी पर होना चाहिए न कि अन्य भाषाओं पर....

भाषा का आधिपत्य ही गर्त के रास्ते से गुजर कर अँग्रेजियत का गुलाम हो चुका है, बात यहीं तक ही नहीं रुकती बल्कि राष्ट्र के मुखर तेज पर कालिख भी पोत कर अँग्रेजियत के कंधे पर बंदूक रख कर संस्कृति का हनन कर रही है| हमारी राजनीति की दुर्दशा है जो एक दिन में चलन में जारी मुद्रा बंद कर सकती है, परंतु जनसामान्य की भाषा को राष्ट्रभाषा नहीं घोषित कर सकती |

राष्ट्र भाषा के घोषित हो जाने से कम से कम उसमें कार्य करने वालों के लिए रोज़गार के शासकीय अवसर बाद जाएँगे , यक़ीनन आज हिन्दी भाषा में स्नातक और स्नातकोत्तर की पड़ाई करने वालों की संख्या में हो रही अवनति का एक कारण यह भी है कि  हिन्दी का रोज़गार मूलक नहीं हो पाना |

वर्तमान समय में हिन्दी भाषा की स्थिति , अँग्रेजियत के मुक़ाबले आज कमतर आँकी जा रही है |उसका कारण यह है कि हमारी शिक्षा पद्धति में अँग्रेज़ी का बड़ता... हमें बच्चों को कम से कम प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा तो हिन्दी में ही दिलवाना चाहिए | बहुत छोटे -से प्रयास भी हिन्दी के महाअभियान में बहुत बड़ा योगदान होगा,
हम सब ठान ले तो हमें महाशक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता....
हमारा राष्ट्र कर्मभूमि के संघर्ष का जीवंत उदाहरण है....
समय आएगाँ, बस आपके जागने भर की देर है...
छोटा-सा प्रयोग कीजिए , अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करना प्रारंभ कर दीजिए
यकिन मानिए, आपको स्वयं ही गौरव की अनुभूति होना शुरु हो जाएगी....

शुरुआत कीजिए,हम जरुर हिन्दी के वैभव से विश्वगुरु बनेंगे...

हिन्दी भाषियों को भी अपने जहाज़ की दिशा राष्ट्र की तरफ ही मोड़ना चाहिए, ताकि हिन्दी की गरिमा को स्थापित करने हेतु हम सब एक मंच पर, एक जाजम पर, एक स्वर में , एक शक्ति बन कर आव्हान करेंअब सिंधु का  आव्हान हैं कि हिन्दी का गौरव पुन: स्थापित हो, हम एकजुट हो कर सामूहिक प्रयास करें.... तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार....... हमें देश में आए अँग्रेजियत के तूफान से लड़ना होगा, और हिन्दी को राष्ट्र भाषा का गौरव अर्पण करना होगा |

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