चतुराई का अभिशाप
मेरे घर पे दावत आई
न्यौता लेके आया नाई।
करके गया था एक की दावत
पहुँच गए हम पाँचो भाई।।
मेरे घर पे दावत आई
एक लिफ़ाफ़ा,पाँच थे भाई
इससे हो सकती थी लड़ाई।
लाए और फिर चार लिफ़ाफ़े
रक्खे उसमे रूपये ढाई।।
मेरे घर पे दावत आई
देके लिफ़ाफ़ा राहत पाई
फिर तो दावत ख़ूब उड़ाई।
हमने कुछ भी छोड़ा नहीं था
पूड़ी खाईं,टिक्की खाई।।
मिलीं हमे दुल्हन की ताई
बोलीं तुम सब पाँचो भाई!
उन्होंने जो शोर मचाया
हुई हमारी ख़ूब पिटाई।।
मेरे घर पे दावत आई
जैसे तैसे जान बचाई
वहाँ से भागे पाँचो भाई।
फिर मिल गए दुल्हन के चाचा
बोले हमसे हया न आई?
हया बहुत बीमार है भाई
इसी वजह से वो न आई।
उसकी चिन्ता करो न बिलकुल
वो खिचड़ी से ख़ुश है भाई।।
मेरे घर पे दावत आई
चचा यूँ बोले शर्म न आई
एक की दावत पाँचो भाई।
मुँह ज़ोरी न करना मुझसे
कर दुंगा तुम सब की पिटाई।।
देखो चचा हम पाँच हैं भाई
हमसे न करना यूँ लड़ाई।
आप भी अपने घर को जाओ
हम भी चले अब पाँचो भाई।।
मेरे घर पे दावत आई
घर की जानिब चले जो भाई
बदहज़मी से उल्टी आई।
उलटी रोके जब न रुकी तो
लेनी पड़ी फिर हमको दवाई।।
डॉक्टर ने यूँ करी लुटाई
पहले सबके सुईं लड़ाई।
नौ सौ रूपए मांगे हम सब से
बोले तुमने नींद उड़ाई।।
मेरे घर पे दावत आई
हमने दावत ग़लत ये खाई
तुम न करना ऐसा भाई।
इतने की न खाई दावत
जितने की ले आए दवाई।।