गाँव की सैर

गाँव की तंग गलियों में चलकर
फिर से दिखा मुझे
वही पुआल वही छप्पर
एहसास हुआ वो देखकर
अभी विकास बाकी है

कुछ जीन्स पहने चश्मा लगाये
खुद को विकसित मानने वाले लोग दिखे
मुहँ में था पान, होंठो पर थी गाली
वो अविकसित ही लगे

विकास की लहर गांव से टकराकर
वापस लौट जाती है
भ्रष्टाचार के फंदे में फंसी प्रगति
दम तोड़ती नजर आती है

अविकसित है पर खुश है
यहाँ के पेड़ झूमते है
चिड़िया चहचहाती है
किसी को दर्द थोड़ा सा भी हो

मरहम लाकर लगाती है
जानवर अपनी धुन में मगन रहते है
शोर,अवसाद अनुपस्थित होते है
इसे ही शांति का उपवन कहते है

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