हाँ बदलना, है बदलना, बस बदलना है अभी अब !!
आर्य की संतान अपने आचरण क्यूँ खो रही है,
वहशियत के चंगुलो में आदमियत रो रही है !
फिर विजयी हो गई है, प्रेम से ताकत भला क्यूँ ,
फिर वहश के पत्थरो से भावना आहत भला क्यूँ ?
फिर दशानन ने कहो क्यूँ जननी को यूँ हर लिया है,
राम के नयनो ने फिर क्यूँ आँसुओं को भर लिया है?
हम अगर अब भी ना बदले तो कहो बदलेंगे फिर कब,
हाँ बदलना, है बदलना, बस बदलना है अभी अब !
हम क्यूँ अब ये भूल बैठे, नारी ने नर को रचा है,
रूप, वैभव, स्वपन,आँसू ,वाणी और स्वर को रचा है !
क्या हुआ है आज जो हम, स्त्री का सम्मान भूले,
गीता और कुरान भूले, वेद और पुराण भूले !
अपने आदर्शो को त्यज कर आधुनिक क्यूँ हो रहे है?
गैर को पाने के खातिर, खुद से खुद को खो रहे है !
मनुज की इस भूल को क्या माफ़ कर पायेगा वो रब,
हाँ बदलना, है बदलना, बस बदलना है अभी अब !
क्यूँ सभी के पास आज एक से अवसर नही है,
मुल्क क्यूँ बँटने लगा है, क्या ये सब का घर नही है?
हिन्दू से मुस्लिम का झगड़ा, कौम की तकरार है क्यूँ,
एक ईश्वर के है बेटे, फिर मजहबी दीवार है क्यूँ ?
हम तो आतंकी नही थे, फिर ये आतंकवाद क्यूँ है,
हाथ में हथियार क्यूँ है, सोच में ज़ेहाद क्यूँ है ?
आखिर कब तक यूँ दिलो को बांटेगे सियासी मजहब,
हाँ बदलना, है बदलना, बस बदलना है अभी अब !!