
मृत्यु
करता हूँ आश्चर्य मैं यह मृत्यु है क्या बला?
कितने आए, कितने गये, कौन समझा भला?
कोई करे पूजा तमाम कि वो पहुँचे बैकुण्ठ।
करे गोदान, करे पिंडदान, ले राम-नाम
बड़े दोष निदान से स्वरग पहुँचेँ कुंठ।।
करता हूँ आश्चर्य मैं यह मृत्यु है क्या बला?
कितने आए, कितने गये, कौन समझा भला?
कोई कहे कि मृत्य-सरिता धोये अमर मन की श्रांति।
पुर चिर उतार, कर स्नान, नव परिधान
नव शैली नववितान से नये तन की भ्रान्ति।।
करता हूँ आश्चर्य मैं यह मृत्यु है क्या बला?
कितने आए, कितने गये, कौन समझा भला?
कोई कहे इसे चिरनिद्रा, एक पूर्ण अन्तविराम।
छल-द्वन्द पाप, पीड़ा का माप, प्रचंड ताप
जीवन ये श्राप से छुट्टी ही मृत्यु का काम।।
करता हूँ आश्चर्य मैं यह मृत्यु है क्या बला?
कितने आए, कितने गये, कौन समझा भला?
मैं जानूँ यह एक धुंध, परम एक हशर।
पथ अनजान, तमस निधान, पर अटल जान
चाहूँ रिक्त-स्थान मेरा भरे कोई बेहतर।।
करता हूँ आश्चर्य मैं यह मृत्यु है क्या बला?
कितने आए, कितने गये, कौन समझा भला?
यह भी चाहूँ मृत्योपरान्त मैं बनूँ चमकीला तारा।
तम घनघोर, जब चहूँ ओर, काली हिलोर
रूठें चंद-चकोर, भटके पथिकों का सहारा।।