मेरी वर्चुअल दुनिया

मेरी वर्चुअल दुनिया में है आपका भी स्वागत
वर्चुअल है जहाँ की हँसी भी,
और हैं वर्चुअल जहाँ के आँसू भी;
यहाँ की मुस्काहट भी मासूम नहीं
कुछ छलीली, दमकीली; डूबी है कर्ज़ में,
वैसी ही कुछ हुई है बचपन की मुस्कान यूँ
कि परिभाषा से उसके 'अल्हड़' ही छू हो गया।
यूँ तो यहाँ मेरा हर लम्हा है 'शेयर' होता,
पर क्या है मेरी हँसी की महक पहुँचती किसी तक?
ठीक उसी तरह जिस तरह मैं जिनके रोये रोता था,
दर्द उनका किसी 'वाल' से टकराकर वापस है जाता।
मामा और नानी के फ़ोन का दिन भर इंतज़ार
सैंकड़ों बर्थडे विशेज़ में भी वो बात कहाँ?
वो ब्लश जो किसी ख़ास की तारीफ से है आता,
हज़ारों 'लाइक्स' से क्या कभी आ सकता है भला?
वो जो 'कुछ' हुआ करते थे मेरे साथ,
हो तो वो 'बहुत' गये हैं;
पर इन 'कमेंट्स' की भीड़ में,
वो मेरे 'कुछ' भी कहीं खो तो नहीं गये?
सबको हूँ जानता, कितनों को पहचानता
अपनी 'फ्रेंड लिस्ट' में से हूँ मैं?
दर्द में भले ही साथ दिखाने की कोशिश करें वो,
पर किसी बेस्ट दोस्त के कन्धों की जगह कौन ले सकता है?
कहने को तो करीब कर दिया
पर दिलों से बँधे खिंचते नाज़ुक रस्सों का क्या?
वो बूँद-बूँद जुड़ते पल अब किसी पल नहीं बनते;
वो हौले-हौले गुदगुदी यादों की
 समाधि तक हैं आ पहुँचे हम।
इस 'सोशल' अकेलेपन से बाहर भी तो निकालो खुद को:
जीभ पर रखो ठंडे कोहरे की खुशबू, 
अब आँखों में बसाओ सुबह की धूप की नर्मी।
बर्फीले चाँद से छीन लो होठों की हँसी,
और गीत अठखेली करते तारों के
अपने कानों तक पहुँचाओ।
आसमान की सिन्दूरी लाली अपने गालों पे रखकर,
पलकों पर रात का खिलखिलाता काजल भी तो लगाओ।
रिश्तों के प्यार से अपने दिल को सींचकर,
'असली' दुनिया को अपना नया मुखड़ा तो दिखलाओ।।

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