समाजवाद की टेढ़ी नाक!
एक वक्त था लहराता
समाजवाद का झंडा
लोहिया जी गुजर गए
बच गया खाली डंडा
डंडा टूटा,इतना टूटा
रह गई केवल गिल्ली
अलख नई जगानी थी
मिली फुस्स माचिस की तिल्ली
फिर भी सोचा सोशलिस्ट होगी
निकली काली कपटी बिल्ली
जो मिला सब कुछ लूटा
खैर करो , बची रह गई दिल्ली
राजकुटुंब सवार है
बग्घीवान! तेज हाँक
उसूल का दौर गया
विचारधारे! धूल फांक
जिन्हे जन गए जननायक
आज उनके बंगले झाँक
बची हुई है केवल
समाजवाद की टेढ़ी नाक!