सुना है साल बदला है
सुना है फिर से अब ये साल बदला है
कोइ बताये क्या हमारा हाल बदला है?
सुना है फिर से अब ये साल बदला है |
वही आदत,वही शोहबत,वही गीबत,वही लब है
वही नजरें,वही मंजर,वही बोतल,वही पब है |
हमें बेहिस से इन रस्तों पे चलना ठीक लगता है
गुनाहें कर के फिर हाथों को मलना ठीक लगता है |
सरापा जिस्म वही है सिर्फ खाल बदला है
सुना है फिर से अब ये साल बदला है|
हमारे दिल मे जुल्मत के बादल इस कदर छाऐं
कि हम इस हाल को इस साल भी न बदल पाऐं
हम इन्सां तो है मगर हैवाँ सी हैं आदतें अपनी
किसी जालिम या फिर शैतान की हैं क्यादतें अपनी |
न जडें बदली हैं न कोइ डाल बदला है
सुना है फिर से अब ये साल बदला है |
हमने तो बचपन से अपनी माँॄओ को सताया है
हमे भला कब,किस वक्त शर्म आया है ?
हमने पुरे साल सडकों पे नजरों की कसरत की
हमने बेहुदा,अय्याश सी अनगिनत हसरत की |
क्या हमारे जिस्म का कोइ भी बाल बदला है
सुना है फिर से अब ये साल बदला है |
वही हाकिम,वही गुरबत,वही कातिल,वही मकतल
वही अदालत,वही मुंसिफ,वही डाकु,वही चंबल |
जुल्म भी वही,जालिम भी वही सिर्फ मजलुम नऐ होंगे
सिसक सिसक के मरने वाले कुछ मासुम नए होंगे |
शिकारी तो वही हैं सिर्फ जाल बदले हैं
सुना है फिर से अब ये साल बदला है |
हम झाँक कर देखें जरा अपने गिरेबाँ मे
क्या हमारा कोइ भी आमाल बदला है |
सुना है फिर से अब ये साल बदला है |