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पिता
वो भू मंडल का अटल सत्य,
नभ का अनंत विस्तार है वो।
है पिता से सृष्टि की उत्कंठा,
तेरे सपनों का संसार है वो।।
मन में अपरिमित स्नेह समेटे,
तन से अनम्य अनुशासन है।
अभिलाषा रूपी सत्ता का,
वो आशावादी शासन है।।
पग पग पर पथ दर्शातीं,
आँखो में भविष्य का सपना है।
जो पिता है तो, बाज़ार का उस
हर एक खिलौना अपना है।।
वो प्रतिध्वनि है मन कलरव की,
ईश्वर का अमिट वरदान है वो।
करने को काल अलौकिक तेरा,
निज भावों का बलिदान है वो।।
आँखो का परिचय दुनिया से,
उन कंधों ने करवाया था।
मंज़िल के पथ पर पग पहला,
उन हाथों ने चलवाया था।।
मीमांसा अन्तर्भावों की,
वो प्रेम है, त्याग, समर्पण है।
वो मानववादी मनस्पटल पर,
तेरी सीरत का एक दर्पण है।।
उस श्रेष्ठ पिता की गरिमा को,
मानव तू बाँट नहीं सकता।
उसके अक्षुण्ण आशीषों को,
ईश्वर भी काट नहीं सकता।।
ऐ पिता तेरे श्री चरणों में,
मेरा सुख सर्वस्व समर्पित है ।
तेरे त्याग पंथ की रज रज को
मेरा लाखों जीवन अर्पित है।।