इंटरनेट युग के बच्चे

स्कूल की छुट्टी हुई,
मम्मी अपने-अपने बच्चों को लेकर घर गई ।
पर यह क्या !
घर पहुँचते ही वे बच्चे,
फिर से मिले अपने दोस्तों से ।
पर इस बार न मोहल्ले में, न चौपाटी में,
न ही कोई कोचिंग एक्टिविटी में;
वह अलौकिक स्थान था - फेसबुक, व्हाट्सएप और स्काइप ।
एक ने किया पोस्ट, दूसरे ने किया लाइक,
और तीसरे ने किया शेयर;
फिर शुरू हो गया अफेयर ।
आज चौराहे पर वह पार्क सूना पड़ा है,
बंधु वृक्ष भी अकेला खड़ा है,
और झूलों पर तो धूल चढ़ा हैं ।
लेकिन झुग्गी बस्तियों का वह मलिन नन्हा मुन्ना अब भी पार्क में ठहरा है,
वह व्यस्त सड़क को दो टूक निहार रहा है,
आते-जाते सभी बच्चों को खेलने के लिए पुकार रहा है,
लेकिन बड़े तो बड़े, मुन्ना को हर बच्चा भी अब दुदकार रहा है !
क्योंकि उसके पास नहीं है - कंप्यूटर, स्मार्टफोन और आई-पॉड,
इसलिए सब मुन्ना को समझता हैं - अशिक्षित, बेवक़ूफ़ और बैकवर्ड ।
यह कैसी इंटरनेट की माया ?
जिसने बच्चों को भी आपस में फर्क करना सिखाया !
ये हैं इंटरनेट युग के बच्चे,
क्या रह गए हैं वे मन के सच्चे ?

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