बदले बदले

बदले बदले आज फिर वो नजर आने लगे हैं
आज फिर से वो ही प्यार जताने लगे हैं
तू खुद को मजबूत कर ले ऐ-दिल
लगता है वो फिर से तेरी शामत लाने वाले हैं
 

वो रूठे ही रहें तो अच्छा है
क्यों कि प्यार अब हम सँभालने के काबिल नहीं रहे
वो यूँ ही देते रहे हमें चोटें
क्यों कि अब हम मरहम सहने के काबिल नहीं रहे
 

एक अरसे से तुमने थमा ही दिया है नफरतों का दामन
अब बस एक इल्तजा हमारी सुनना
अब हमें इससे जुदा करने कि कोशिश न कर
बहुत मुश्किलों से आया है तेरी नफरतों से इश्क़ करना
 

वैसे एक बात कहें...
तुम हो बड़े ज़ालिम और बेदर्द
क्या सोच रहे हैं अब... क्यों
बस खुद को आयने में देखना जवाब मिल जायगा
 

अब तो आलम ये है ग़ालिब कि
उनकी बेरुखी पे भी कुछ कहने को मन नहीं करता
कहाँ एक वक़्त उनकी ज़रा सी नज़रअंदाज़गी हमारे
अश्क़ भा दिया करती थीं

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