मजबूरी

आदमी का ईमान
और स्वाभिमान
क्षणभर भर में चकनाचूर
कर देती है मजबूरी
आदमी हार कर
घुटने टेक देता है
मजबूरी के आगे
और बन जाता है एक दिन
दुनिया की नजरों में
दाना मांझी
दरअसल जब कोई मांझी
अकेले अपने कंधों पर
प्रिये का शव ढोता है
तभी जाकर मजबूरी का नाम
महात्मा गांधी होता है

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