फुटपाथ के बाशिंदे !

ठिठुरती ठंड में
नंगे बदन
फुटपाथ के छोर पे ...
कानों को चीरती
वाहनों की ध्वनि
कच्ची उम्र में ही
बन जाते है वे ....
मौत के पक्के खिलाड़ी
नींद के आगोश में
रोज खेलते है ....
मौत का खेल
जीते तो जश्न मनता है
हारे तो ....
किसी ट्रक का पहिया
सिर से होके गुजरता है ....
ता-उम्र जिंदगी का सिलसिला
बस ! इसी कदर चलता है .....
क्षणभर की सांसे पाने को
लालायित रहते है .....
और फिर पल-पल
मौत के इस्तकबाल में आतुर
सांसो के संघर्ष में .....
हंसते-खिलखिलाते सहर्ष
एक दिन
लपट जाते है ....
मौत से दो दो हाथ कर
मौत के ही हो जाते है .....
फुटपाथ के बाशिंदे !

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