सपनों का किनारा
लगने ही वाली थी मेरी कश्ती किनारे ..
कि हवाओं के झोको ने इशारा कर दिया
तड़प उठा दिल बच्चा सा मेरा
जो चाहा दुबारा तो दुबारा कर दिया !!
दोष देता भी कैसे उन बेवफा हवाओं को
जो सिंधु को छोड़कर भाग सी रही थी
कैसे कहता, ऐ साहिल ला दे कश्ती किनारे
जो अपने ही ग़मो कि दास्तां कह रही थी
अब तो शिक़वा है बस कश्ती के उस मालिक से
कि ऐ खुदा ! एक पल के तूने ये क्या कर दिया ....
कि लगने ही वाली थी मेरी कश्ती किनारे ..
और हवाओं के झोको ने इशारा कर दिया !!
ऐसा नही, फिर भी सोचता हूँ ?
कि किनारो ने मुझसे किनारा क्यों किया ?
रहा होगा उनको पहले से ही अनुभव
बताया नही फिर तमाशा क्यों किया ?
शायद ! ज़रूरी था बताना हवाओं के रुख को
इसीलिए तो उसने दोबारा कर दिया
कि लगने ही वाली थी मेरी कश्ती किनारे
और हवाओं के झोको ने इशारा कर दिया !!