इश्क़ और समाज

हमे तुमसे इतनी मुहब्बत क्यों है ज़ालिम,
जबकि तू किसी के सपनो की परी बन चुकी है,
महसूस करता हूं तुझको हर ज़र्रे की आहट में,
जबकि तू किसी के आंगन की तुलसी बन चुकी है !!
 

इतना न हमें चाहो कि ऐ मेरे जानम,
वरना अपने ही रास्ते को मोड़ डालोगी,
सर-ताज़ बन चूका है जो दुनिया के नज़रो में,
उस ताज़ को ही रास्ते में छोड़ डालोगी !!
 

बस याद आएगी तू कितनी नकचढ़ी थी,
गलती रहती मेरी और खुद रो पड़ी थी,
मर जायेगा ये दीवाना मगर पूछने न देगा,
किया क्यों ऐसा तुमने तुम तो लिखी-पढ़ी थी !!
 

राहुल का क्या है रानी ये मौसमी बादल है,
अश्को कि बारिश में छूट जायेगा,
बर्दाश नही इसको दामन पे दाग तेरे,
जुदाई का ज़हर भी घूट जायेगा !!

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