माँ
आधी रात का वक्त था , वो अब भी जाग रही थी करवट बदलते हुये ,
उसकी आंखो से नींदे बड़ी दुर चली गयी थी ख्यालों के साथ चलते हुये ।
माँ थी आखिर ,अपने बच्चे का ख्याल करना वो छोड़ नही सकती,
थे जब गर्भ में तब से चल रहा ये सिलसिला वो तोड़ नही सकती ।
बेटी ब्याह कर अब अपने परीवार के साथ बड़ी खुशी से रहती है ,
हर दम फोन करती और बार बार अपना ख्याल रखने की बात कहती है।
बेटी बहुत याद करती है मगर मिलने बहुत कम आ पाती है,
बेचारी, दो दिन भी घर से निकले तो स्कुल में बच्चो की छुट्टी लग जाती है ।
बेटा भी अब अच्छा कमाने लगा है लिए बहु ,बच्चों के साथ शहर में रहता है,
माँ के घर आने की बात पर ' छुट्टी मिलते ही आ जाऊंगा' बस इतना कहता है ।
मगर उसे छुट्टी नही मिलती शायद , या जब मिलती है उसके ससुराल में कुछ काम आ जाता है,
बेटे को नही बुलाती माँ कभी , उसे तो अपना छोटा पोता बहुत याद आता है ।
अक्सर रात काट देती वो अॉखों में जागकर और सबेरे फिर जल्दी उठ जाती है,
वो माँ है , घर का हर काम करती है, हर रिवाज अब भी निभाती है ।
आज सुबह आंगन की झाडु लगाते हुये , कुछ चक्कर सा आ गया,
गिर गयी आंगन में माँ , और घर आंगन सबकुछ माँ में समा गया ।
माँ ने बच्चों का ख्याल लिए अॉखों में दुनिया सेअंतिम विदायी ले ली,
पास आकर बैठ गयी कुछ गौरेया, कुछ दिनो से आखिर वो ही तो थी माँ संगी सहेली ।
अब माँ नही है तो बेटी फोन ताकती रहती है खोजती है नम्बर की माँ से बात कर पाये,
बेटा अब बैठ जाता है रातो को उठकर की माँ फोन पर घर बुलाये और अबके वो सच में चला जाये
मगर अफसोस,
माँ अपना फोन यही छोड़ गयी !