धरती को डर कुछ ऐसा भी

धरती को डर नहीं भूकंप भूचालों से
धरती को डर नहीं ज्वाल विकरालो से
यह तो सिर्फ एक परिवर्तन का संकेत है
नाश से निर्माण का उद्देश्य है।।

 

धरती को डर है तो सिर्फ इस बात का
असत्य हावी ना हो जाए देश पर
वरना देश में रहेगा सत्य फिर किस बात का।।

 

देश बिखर जाएगा मोती माल की तरह
मोती गुम जाएंगे "सुभाष" की तरह
हम तो सिर्फ सोचते ही रह जाएंगे
मोतियों को ढूंढ भी नहीं पाएंगे ।।

 

मोती उठा ले जाएगा कोई सिरफिरा
मुह भी बिराएगा चिढ़ाएगा धमकाएगा
फिर भी हम सोचते ही रह जाएंगे।।

 

देश को चाहिए मोतियों को ढूंढे
मोती संग्रह कर इंसानों को जोड़े
मोतियों को सूत्र में पिरोना है
मोती माल को मां को भेंट करना है ।।

 

तब मां प्रसन्न होंगी
हमें एक सूत्र में बंधे रहने का वर देंगी
वह दिन होगा हमारे जश्न का
नाचने का, गाने का ,खुशियां मनाने का।।

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