देश नहीं,माँ है
क्या एक सीमाओं से घिरे हुये भू-भाग को,देश कहतें है।
या लोगों के एक समूह को, जो बस इसमें रहतें है।।
क्या बस देश संगठन है, विभिन्न प्रान्तों-प्रदेशों का।
या बस परिचायक है, सिर्फ विविध परिवेशों का।।
ये परिभाषा हो सकती है, राजनीति और भूगोल की।
मेरे देश की ख्याति नहीं, मोहताज़ किसी के बोल की।।
ये माँ हम बेटे है, बस इतना कहना काफी है।
संकीर्ण शब्दों में सब कहना, माँ से नाइंसाफी है।।
तेरी ही स्वच्छ सलिल में, प्रथम श्वांस को पाया है।
तेरी ही पावन भूमि में, पहला कदम बढ़ाया है।।
तेरे ही भूमि में उपजे, अन्न भोजन में पाया है।
तेरे ही शीतल जल से, कंठ की प्यास बुझाया है।।
तू ही धड़कन, तू ही रवानी, तू ही मेरी जां है।
मेरे लिये बस तू दुनिया है, तू ही मेरा जहाँ है।।
तू न केवल जल थल है, न ही बस आसमां है।
यशुमति सा पालन करने वाली, प्यारी भारत माँ है।।