स्त्री जगत

वो पेट में थी पल रही,पर सभी अंजान थे ।
बेटे की चाहत में , आनंदित उन्माद थे |
आशीर्वादों में , आवाजों में बस बेटे की आहट थी,
सबके मन के अंदर अंदर बस बेटे की चाहत थी ।
पर कीचड में खिले कमल और काँटों में फूल ,
हाँ माँ की ममता ऐसी ही है , करती सबकुछ धूल ।
जब बेटी ने जन्म लिया ,तब सबके मन की छाव हटी,
माँ ने जैसे गले लगाया , सबकी ममता फूट पड़ी ।
 

अब नियति की बारी थी , उसने भी समझाना चाहा तुम लड़की हो |
शारीरिक बनावट से और मृदु-भाषित कर , समझाया तुम लड़की हो |
कुछ बड़ी हुई वो जब ,सबने समझाया तुम लड़की हो ,
उच्च जनों ने धमकाया तुम लड़की हो ,
तुमको ये ना सोभा देता ,तुम वो ना कर सकती हो |
इस समाज ने सिखलाया तुम लड़की हो |
 

ऐसे तीक्ष्ण क्षणों में आकर , माँ ने फिर से समझाया ,
- कोमलता , सरलता , विहलता, ये स्त्री के आभूषण है ।
इनसे औरत की सज्जा है , सबसे सुन्दर ये लज्जा है |
पर बिटिया मेरी बात मान, तू ही है सबसे प्रधान ,
जग के आदि से अंत तक तू ही है सर्व-शक्तिमान ,
अपनी शक्ति को पहचानो , यह बात जरा सी जानो -
जब जब आभूषण टूटें है , तब तब समाज ने जाना है
लक्ष्मीबाई , अहिल्या मीरा की शक्ति को पहचाना है।
बछेंद्री की चढ़ाई में , कल्पना की उड़ान में |
स्त्री शक्ति को सबने स्वीकारा है

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