एक सैनिक - कश्मीर से
अपनों ने अपनों के खिलाफ जंग छेड़ी है
हाथ मे बन्दूक तो है पर
लगता है पाओं मे बेड़ी है
उन्हें मारूंगा हार मेरी है
उन्हें छोडूंगा हार मेरी है
उन्हें मारने मे कोई मज़ा नहीं है
पर क्या करूं उनकी सजा भी यही है
मेरी दुआ है ये रास्ते पर आ जाएं
ताकि ये भी हस्ते हुए अपने घर जाएँ
ना चलानी पड़े मझे उनपर गोली
ना खेलनी पड़े मझे खून की होली
हर गली हर कूंचा हर ज़र्रा
लोगो के खून से सना है
सूरज तो रोज़ आता है यहाँ
मगर वादियों मे अँधेरा घना है
अब तो है इंतज़ार है उस दिन का
जब इनके हाथ दुआ के लिए उठेंगे
और मे कहूंगा की देख पाकिस्तान
की ये हाथ अनेक हैं
पर हम सब एक हैं हम सब एक हैं