दोषी मोर
ठंडी हवाओं का मौसम जंगल में छाया है
रंग बिरंगे पंख फैला मोर नाचने आया है
पर अंजान है दूर दिखती उन हरी कतारों से
जंगली कुत्ते झांक रहे हैं,उसे उन झाड़ों से
मोर की ओर दौड़ पड़े और उसको झकझोर दिया
रंग बिरंगे पंखों को निर्ममता से निचोड़ दिया।
ज़ख्मी मोर जा पहुंचा अब हाथी के पास है
कहता "हे बलशाली, तुमसे न्याय की आस है"
हाथी,भालू और खरगोश, मोर के साथ चल पड़े
न्याय मांगने, राजा शेर के पास चल पड़े
पर शेर बोला"कैसे इस मोर पर विश्वास करूँ?
किस वजह पर उजड़े पंखों का हिसाब करूँ?"
तो जवाब दिया खरगोश ने:
वो देखो मोर के पंखों का हरा रंग पड़ा है
निर्ममता की चीखों से अभी तक भरा है
वो देखो नीला रंग,जिस पर कई हाथ हैं झपटें
उसमें से उठ रहीं अभी तक दर्द की लपटें
यह देखो पेड़ों की हर शाखा कैसे झुक गई
पवन की यह तेज वेग है देखो कैसे रुक गई
अब क्या आसमान चीर कोई हाहाकार निकले
क्या चाहते हो राजा,धरती से अंगार निकले?
माना की खरगोश की बात में गहराई है
पर कुत्तों के साथ भी एक लोमड़ी आई है
जिसमें वर्षों का अनुभव और गहरी चतुराई है
सारी बात उसने गोल-गोल घुमाई है
कहती हे राजा देखो,
इन कुत्तों का मन कितना काला है
कभी नहीं पड़ा दूसरे रंगों से पाला है
जब देखेंगे नीले,हरे और सुनहरे रंग को
तो खून थोड़ा उबलेगा ही
नादान हैं,नासमझ हैं,अब जी तो मचलेगा ही।
पर किसने अधिकार दिया मोर को पंख फैलाने का?
बीच जंगल में जाकर अपना नृत्य दिखाने का?
आग बबूला शेर अब गुस्से से गरजाया है
बोला"मेरी सद्बुद्धि ने मोर को दोषी पाया है"
इसने पंख फैला,बेचारे कुत्तों को भरकाया है
फिर चीख पड़ा मोरों पर
"खुद को थोड़ी समझ दो, कुछ सोच दो"
फिर आदेश दिया गिद्दों को
"मोर का शेष मांस भी नोच दो"
हाथी की आँखों में आक्रोश
खरगोश की आँख में पानी है
दोनों ने मिलकर जंगल में
बदलाव लाने की ठानी है
पंछियों ने लगा दिए हैं घोंसलों मे ताले भी
भालू हाथ में लेकर आ गए मशालें भी।
पर क्या करोगे जाग कर, चलो थोड़ा और सोते
बारह मास वर्ष में बसंत के नहीं होते
मौसम ने वापस लेली इक अंगड़ाई है
जंगल में लौटकर वही पतझड़ आई है
टूट गए घोंसलों पर लगे वे ताले भी
जल रही थी जो मशाल, वह भुजने को आई है
सूख गए खरगोश की आँखों के भी आंसू अब
हाथी के जज़्बे मे भी भारी थकान छाई है
सारी व्यवस्था वैसी ही ढेर है
जंगल का राजा आज भी वही शेर है।