महारथी कर्ण

सूर्य सा तेज लिए वो शुद्र के घर में पला
धनुर्विद्या पाने को सामाजिक कुरीतियों से लड़ा
संघर्ष करके वो अथक, अतुल्य धनुर्धारी हुआ
दान परीक्षा में सभी दानवीरों पर भारी हुआ
माता कुंती के लिए पुत्रों का जीवनदान दिया
पहचान इंद्र की मनसा भी अपने अंगों का दान किया
 

चारों दिशाओ मे युद्ध का विगुल था अब गूंज उठा
वाणों की गति से कुरुक्षेत्र में चक्रवात घूम उठा
उसकी वर्षों की प्रतीक्षा पर तनिक तृप्ति का प्रभाव हुआ
अब जाकर था गाण्दीव का विजया से टकराव हुआ
 

पर समय के चक्रव्युह ने उसके भाग्य को जकड़ लिया
उसके रथ के पहिये को अब भूमि ने था पकड़ लिया
वो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनने का स्वप्न भी अब झूल गया
गुरु परशुराम के श्राप से वो धनुर्विद्या था भूल गया
 

गाण्दीव सचेत देख, अर्जुन पे धर्म का उसने प्रश्न उठाया
पर उत्तर का वाण अब माधव की ओर से आया
कर्ण याद करो कैसे उसदिन तुम्हारे पौरुष का अपमान हुआ
जब भरी सभा में था छलनी एक नारी का सम्मान हुआ
 

गंगापुत्र के सामर्थ्य को किसी प्रतीज्ञा ने पकड़ लिया
अश्वत्थामा के मोह ने था गुरु द्रोण को जकड़ लिया
फिर द्युत की आढ़ मे ये खेल बड़ा गंदा हुआ
मित्रता की पट्टी बाँध, कर्ण धृतराष्ट्र सा अंधा हुआ
 

ये अधर्म का सैलाब यहीं नहीं समाप्त हुआ
याद करो कैसे अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ
एक नन्हे बालक को महारथियों के चक्रव्युह ने घेर लिया
उसके प्रतापी सौर्य को क्रूरता से था ढेर किया
 

अब अधर्म का पलड़ा भर चुका था
कर्ण का सूरज ढल चुका था
खुद से हुए अधर्मों का था अब उसने आभास किया
बाहों का आलिंगन फैला मृत्यु का आवाहन किया
 

फिर गाण्दीव की प्रत्यंचा तनी और वाणों का संधान हुआ
एक महारथी का कुरुक्षेत्र को अब अंतिम प्रणाम हुआ
वासुदेव कृष्ण से प्राप्त बहुमूल्य ज्ञान हुआ
 

कि जब-जब सामर्थ्य ही संकट बनेगा धर्म के प्राणों पे
तब-तब महारथी कर्ण पराजित होंगे, वीर अर्जुन के वाणों से

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