
क़िरदार
ज़िन्दगी इक किताब सी है
जिसके अध्याय उम्र का पड़ाव और
पृष्ठ हर बीतते दिन से हैं।
सूत्रधार मन, यादों की स्याही और
दिमाग़ी कलम से किरदार गढ़ता,
और पटकथा में नए पृष्ठ, नए अध्याय
विरल वास्तविकता से जुटते जाते हैं।
पर आज मेरा प्रश्न तुमसे है
प्रश्न नहीं अपितु निवेदन है
निवेदन नहीं अपितु सलाह है
कि शायद ना रहूँ मैं किताब में तुम्हारी
कुछ ही पन्नों के बाद,
या यादों की स्याही गिरकर पृष्ठों पे
मिटा दे मेरी अदनी याद,
पर गर रह गया मैं त्रुटिवश
तो ज़रा ठहरना, थोड़ा और ठहरना
और ठहर के सोचना
कि जो क़िरदार तुमने है बनाया
क्या वास्तविकता के निकट लाया!
वीभत्स वात्सल्य विस्मित विरक्त
भय करुणा तृष्णा आवेग सक्त!
प्रश्न करना खुद से, फिर से
कि मैं जो रहा, जो हूँ, जो होना चाहता हूँ
या होना चाहने की इच्छा रखता हूँ
उन्हें तुमने कितना देखा, कितना माना
कितना समझा, कितना जाना।
गर जवाब मिल जाये तो
बेबाक गढ़ देना क़िरदार मेरा।
किन्तु कहूंगा मैं तुमसे कि
अनदेखा कर कुछ चीजों को
थोड़ा और देखना, और समझना, और जानना।
क्योंकि प्रिय, पृष्ठ कम हीं हैं इस अध्याय में,
व्यर्थ खर्च हो जाएंगे।