बूझकर भी जलना आता है

अखण्ड दीप का अखण्ड ज्योति हु,
बूझकर भी जलना आता है।
कफन बाध सीमा पर चलता दुश्मन भी घबराता है,
मेरे शौर्य के आगे दुश्मन नतमस्तक हो जाता है।
देख हमारी छाती को पर्वत सिहर सा जाता है,
मेरे एक हुंकारों पे शेरो का गर्जन रुक जाता है।
 

अखण्ड ज्योति का अखण्ड दीप हु,बूझकर भी जलना आता है।
आधी और तुफानो के रुख को मोड़ मैं देता हूं,
वर्षा जैसे ऋतुओ को डटकर सामना करता हु।
आती है जब सरद ऋतु तो अपनी वर्दी की अग्नि से
सर्द को गर्म कर देता हूं,
आती है ग्रीष्म ऋतु तो मा भारती के सीतल कि छाव आँचल में यू सहन कर लेता हूं।
अखण्ड दीप का अखण्ड ज्योति हु बूझकर भी जलना आता है।
इतिहास हमारा क्या लिखेगा,हम इतिहास लहू से लिखते है।
देकर अपने प्राणों की आहुति अमिट सदा के लिए हो जाते है,
मा भारती के आंचल का तिरंगा ओढ़कर हम सहीद हो जाते है।
अखण्ड दीप का अखण्ड ज्योति हु बूझकरभी जलना आता है

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1223
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com