यौवन

चांद सवेरे सूरज से जब मिलता है,
इक लड़की का चेहरा पीला दिखता है।
 

तारे उसके पीछे-पीछे चलते हैं,
मुखड़े पे फिर काला टीका खिलता है।
 

नज़रों में जो तैरता शहद शरम का है,
खारे सागर को भी मीठा करता है।
 

पायल की छम-छम इक न्योता देती है,
गीतों मे मन उसका जाकर बसता है।
 

पत्थर भी शीशों से चुंबन करते हैं,
तेरा मेरा नाम भी कितना जचता है।
 

काशी की गलियां तुझमें आ बसती हैं,
कलकत्ता सा सुंदर सपना लगता है।
 

नीरवता को महका देती चंचलता,
चंदन तेरी खुश्बू छीना करता है।

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