अवसर

रोज़-रोज़ आते हैं अवसर,
ओजस और दमकते हुए।
हर वक्त करवटेें लेता है,
एक ध्रुव तारा, यह कहता है।
और तेजवान सूरज,
सब कुछ सहता है।
 

आती हैं अनगिनत आशाएँ,
लौ की तरह चमकते हुए।
और शूल-फूल की पंखुड़ीयों से,
विष-अमृत को पीते हुए।
 

एक पात से अनेक पात तक,
संघर्ष निरंतर करते हुए।
अपने हर दृढ़ संकल्प को,
सहृदय, संपूर्ण करते हुए।
 

वो धूंधली-बदली की ऋतुएँ,
पल भर में यूँ ही छट जाएंगी।
वो शुभ्र-नक्षत्र दमक जाएगा,
नवपल्लवित पुष्प महकाते हुए।
 

जो कर्मठ है, जो सामर्थवान है,
वो विजय पताका लहराएगा।
फिर विजयोल्लास के बेला में,
सफलता खुशियाँ बांटेगी।
और अनचाहे इस अंधकार से,
क्षण मे मुक्त कराएगी।

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