
सिर्फ इंसान होंगे
मुझे नहीं मालूम
इतिहास के उतरार्द्ध में
क्या बचेगा
और
किसकी विवेचना
आने वाली
अगली पीढ़ी करेगी
किस नई खोज की
जिज्ञाषा में
मानव फिर से
कहीं आग,कहीं खेती
कहीं चक्का,कहीं सभ्यता
की बारंबारता को
लालायित होगा
कैसा होगा समीकरण
क्या होगा मापदण्ड
क्यों होगी सुगबुगाहट
कब होगी कसमसाहट
कहाँ होगा प्रारब्ध
यह सब समय के
गर्भ में ही
सन्निहित है
हाँ
मुझको इतना यकीन है
इस अत्याधुनिक और मशीनी
युग के बाद
वो दौर अवश्य आएगा
जहाँ
इंसान फिर से इंसान होंगे
न भगवान, न शैतान
सिर्फ इंसान होंगे
न भाग्य,न विधान
सिर्फ इंसान होंगे
न गीता,न क़ुरआन
सिर्फ इंसान होंगे
न मरघट,न शमशान
सिर्फ इंसान होंगे
न हिन्दोस्तान,न पाकिस्तान
सिर्फ इंसान होंगे