टूटा सपना
मन ऐंसे उलझ गया है नाकामी के जाल से,
पत्ते जैसे टूटे जाते है वृक्ष की डाल से,
भूल गया वह कर्ज इंसानियत का फर्ज,
जीवन अब समाप्त भी हो जाये कोई नहीं है हर्ज
हँसी मेरी ख़त्म हो गई, ख़त्म हो गई नफरत,
जीवन के हर सपनो की ख़त्म हो गई हसरत,
पन्ने ख़त्म हो गये हर किस्सो की,
हर कहानी बिखर गई है रिश्तो की
गम के बादल छाये हुये है सपने आंसुओ में डूब गए,
जीवन के हर क्षेत्र से हँसी के परिंदे उड़ गये,
दिशाहीन हो गया हूँ दिशा की तलाश है,
मेरे जीवन का हर लम्हा अब आंसुओ का दास है
ऐसी पतंग बन गया हूँ जो काबिल नहीं है उड़ने के,
तूफान में टूटा वह वृक्ष हूँ जो लायक नहीं है फलने के,
इतना नीचे गिर गया हूँ कि चाह-कर भी अब उठ न सकूँ,
दिल में अब कोई इच्छा नहीं जिसका पींछा कर सकूँ
कितने अच्छे दिन थे, थे कितने अच्छे सपने,
हर पल याद आ जाते है बचपन के ओ लम्हे,
क्यूँ ऐसा हो गया हूँ भूल कर उसका कर्ज,
जिसने मेरी ख़ातिर निभाया हर फर्ज
अंधेरे में क्यूँ चला गया मैं छोड़ के हर उजाले को,
क्यूँ ना जीवन बदल सका मैं तोड़ के गम के ताले को,
हर सपना तोड़ दिया, तोड़ दिया हर वचन,
पत्थर बस चूने है मैंने छोड़ के रतन
कोई तो राह दिखा दो दाता जिस पर मैं चल सकूँ,
टूटे हुये हर सपनो का फिर से संगम कर सकूँ,
बंजर रुपी जीवन को फिर से हरा बना सँकू,
मेहनत से इसे सींचकर ज्ञान के वृक्ष उगा सकूँ,
नया सपना बुनकर उम्मीद का वस्त्र बना सकूँ,
चाहे जितनी बार गिरू मैं उठ-कर साहस बढ़ा सकूँ |