मेरे डर
मुझे अज़ीज़ हैं
मेरे डर
जो मुझे इंसान बनाए रखते हैं
और
मुझे हैवान नहीं होने देते
डर की विसात गर खत्म हो जाए
तो फिर बचेगा क्या
अतिक्रमण,रोष,व्याभिचार
नाज़ायज़ संवाद
या
शीशे में पिघले हुए
उबलते लफ्ज़
जो कभी भी
किसी को
लहूलुहान कर कर सकते हैं
डर
अगर यह साबित करती है कि
इंसानियत के बचे रहने में
यह भी एक अहम मीनार है
तो
हमें डर को
पालना चाहिए
और
कोशिश करनी चाहिए कि
यह डर किसी मनुष्य को
दानव होने से बचाए
और
गर रातें जुल्म में झुलस गईं हैं
तो
उनकी राह सितारों से सजाए
मुझे
इस तरह डरपोक होने पर
कोई शर्मिंदा नहीं है
क्योंकि
डर अगर मुझे जीना सीखा दे
और
दूसरों के साथ जीना सीखा दे
तो मुझे बहुत प्यारा है
मेरा डर ।