राष्ट्र वन्दना
गंगा की अविरल धारा सा,
कण कण में मुखरित ज्ञान व्योम,
तप त्याग और बलिदान युक्त,
स्वर्णाभ धूम नभ सारा है,
हे विश्वगुरु हे प्रथम देव,
हे शांतिदूत तुमको प्रणाम,
हे अखिल विश्व की उद्धारक,
हे मातृभूमि तुमको प्रणाम ।।
वेदों की सभी ऋचाओं में,
जो सत्य शिवम् है राग भरा,
सुन्दरतम सब सरिताओं में,
जिसने है कल-कल नाद भरा,
हे अद्वितीय हे अतुलनीय,
हे हे विराट तुमको प्रणाम,
हे अखिल विश्व की तपोभूमि,
हे भावभूमि तुमको प्रणाम ।।
सीमा की सभी कथाओं में,
जो शौर्य गान का मान भरा,
दुर्जेय पराक्रम से जिनके,
भारत का जग में मान बढ़ा,
हे शूरवीर प्रहरी प्रवीण,
हे हे प्रयुत्सु तुमको प्रणाम,
है धन्य धरा पर धन्य सृष्टि,
हे देवभूमि तुमको प्रणाम ।।
उत्कृष्ट अमर गाथाओं में,
उद्दीप्त प्रेम की सरिताएं,
जो कभी न थक पाएं ऐसी,
ये ज्ञान भक्ति की धाराएं,
हे चिर सजीव हे चिर नवीन,
हे मेरे राष्ट्र तुमको प्रणाम,
हे मानवता की मानधरा,
हे ज्ञान भूमि तुमको प्रणाम ।।