स्पर्धा और ज़िन्दगी
कुछ वर्षों पहले कितनी
आसान ज़िन्दगी थी
तब प्रेम हुआ करता था
कोई स्पर्धा ना थी ||
आज हर शख्स
स्पर्धा में जी रहा है
एक ख़ूबसूरत जिंदगी की
तमन्ना दिल में लिए
जिंदगी को ही
बोझ बनाकर ढो रहा है ||
अपनी इसी तलाश में
उसे पता ही नहीं कि
वो धीरे-धीरे अपना
हर रिश्ता खो रहा है ||
कोई दौलत की दौड़ में
कोई शौहरत की दौड़ में
बड़ा मशगूल हो रहा है
और मासूम बचपन
पढ़ाई की होड़ में आज
अपना बचपन खो रहा है ||
वर्तमान ख़ुशियों की लाशों पर
भविष्य के सपने संजो रहा है
ख़ूबसूरत ज़िन्दगी को
बोझ बनाकर ढो रहा है ||
जिंदगी बहुत खुबसूरत है
शिद्दत से महसूस कीजिए
महत्वाकांक्षा भी पालिए
स्पर्धा भी किया कीजिए ||
पर कभी-कभी अपने लिये
कभी अपनों के लिए भी
कुछ वक्त दिया कीजिये ||