मेरा वतन दंगों में कहीं खो गया
मैं दंगा में मारा गया
कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं हूँ
मैं अदना सा एक इंसान हूँ
जिसे इस जलालत से
पहले तक यकीन था
अपने राष्ट्र पर
और
अपने राष्ट्रवादी होने पर
जिसे लगता था
यही सबसे बड़ा ढाल है
किसी भी विपत्ति के खिलाफ
यह
माँ का आँचल
प्रेमिका का दुपट्टा
बेटी का सिरहाना
और
बहन की राखी भी
बन सकता है
और
भेद सकता है
किसी भी जिल्लत को
पर
आज ऐसा हुआ नहीं
मेरे साथ ही
सड़कों,नालों,कूड़ों,मलबों में
पड़ी है लाशें
मेरी माँ की
मेरी प्रेमिका की
मेरी बेटी की
और
मेरी बहन की
जिनकी रक्षा मुझे करनी थी
और
जो मेरी जान बचा सकते थे
और
यह दोनों आश्रित था
मेरे राष्ट्र के मेरे होने में
राष्ट्रवाद का अर्थ संजोने में
पर
एक बार फिर से
मेरा विश्वास धराशायी हो गया
जो मेरा प्यारा वतन था
वो दंगों में कहीं खो गया ।।