अलीगढ़ का सफ़र

भारत की शिक्षा नीति- पहले तो कक्षा १२ तक अपने ही सहपाठियो के साथ रेस लगाओ आगे बढ़ने के लिए और फिर कूद पड़ो एक राष्ट्रीय सफर में जहाँ पहले से ही लाखो विद्यार्थी मौजूद है | इंजीनियरिंग एक ऐसी रेलगाड़ी है जिसमे कोई सीट बेल्ट नहीं लेकिन गड्ढे अनेक है जो हर पल नया झटका देते है | इंजीनियरिंग की इस रेलगाड़ी में बैठते तो लाखो है परन्तु इंजीनियरिंग की मंज़िल तक कोई कोई ही पहुँचता है | कुछ क्लेरिकल जॉब्स, कुछ सरकारी अफसर, कुछ अध्यापक और बहुत कुछ तो बेरोज़गार ही रह जाते है | लेकिन विज्ञानं के हर विद्यार्थी  का लक्ष्य इंजीनियरिंग ही होता है | इस रेलगाड़ी का टिकेट भी आसानी से नहीं मिलता हज़ारो को पीछे छोड़ जब आप किसी परीक्षा में  आगे जाते है तो  ही टिकेट मिलता है | टिकेट प्रदान करने के लिए संस्थान  बहुत है- आईआईटी जईई, जईई मेंस आदि |
 

जोश जोश में मेने भी कक्षा १२ विज्ञानं से अच्छे से पार करली थी परंतु इंजीनियरिंग का टिकेट मिल पाना गले का कांटा बना हुआ था | तभी पता चला की मुस्लिम वर्ग के लिए अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया आरक्षण प्रदान करती है तो कुछ जान में जान आयी और भर दिए फॉर्म | समय बीतता गया और परीक्षाएं मायूस करती गयी| बस मुस्लिम आरक्षण ने ही आस बचा रखी थी और वो दिन आ ही गया जिसका मुझे  हर परीक्षा के बाद इंतज़ार रहता था |
 

अब ये बतादू की मैं बिजनौर जिले के नजीबाबाद शहर से ताल्लुक रखता हूँ | शहर से ज्यादा बाहर जाना कभी हुआ नहीं और अकेले की तो बात ही छोड़ दीजिये| दोस्तों के साथ शहर में घूमने पर भी घर से डाँट ही सुनने को मिलती थी | लेकिन अब कक्षा १२ के छात्र थे तो घरवाले भी बड़ा मानने लगे थे इसीलिए अकेले अलीगढ जाने की इजाज़त मिल गयी| नजीबाबाद से एक ही ट्रैन अलीगढ जाती थी - देहरादून लिंक एक्सप्रेस - वो भो रात को पहुंचती थी वहाँ| बस क्या था बैग किया पैक रखी मैथ्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री की तीन किताबें और पहुँच गए स्टेशन |
 

ट्रैन २ घंटे लेट आयी और इतनी भीड़ में किस तरह घुसा था मैं आज तक समझ नहीं आया| जनरल डिब्बे में अलग अलग तरह के लोगो से सामना हुआ| कोई गुटखा चबाये बड़ बड़ कर रहा था तो कोई अपनी ही धुन मे मोबाइल से गाने सुन रहा था और मैं चुपचाप सीट के कोने में बैठा खिड़की से बाहर देख रहा था | कब रात हुई कब मैं सोया और कब ट्रैन अलीगढ पहुँच गयी पता ही नहीं चला |रात के १ बजे होंगे जब मैं अलीगढ स्टेशन पर खड़ा ये सोच रहा था की कमरा लू या न लू | तभी मैंने एडमिट कार्ड निकाला और एक चाय वाले से पुछा की यूनिवर्सिटी कितनी दूर है | उसने बताया की आधा घंटा लगेगा स्टेशन से | तो मैं इस नतीजे पर पहुंच की ५ घंटे के लिए कमरा क्या बुक करू , साथ ही काफी सरे लड़के जो स्टेशन पर ही सो रहे थे उन्होंने मेरा मनोबल बढ़ दिया की कमरे की कोई ज़रुरत नहीं | मैंने भी चादर निकली और स्टेशन पर ही पसर गया प्लेटफार्म नंबर १ पर | नींद का तो कुछ अता पता था नहीं और भला प्लेटफार्म पर किसी को नींद आ सकती है क्या | बस आने जाने वाले ट्रैन और उनसे  उतरने  चढ़ने  वाले लोगो को देखते  ही मेरी  रात  गुज़री | सुबह होते ही आज़ान सुनाई दी और मैं चल पड़ा मस्जिद की ओर| वहां नमाज़ अदा की और दुआ की ऐ खुद बाकि परीक्षाओ में जो भी हाल रहा हो इस परीक्षा में सिलेक्शन करा देना | मस्जिद से निकलकर चाय पी और मेट्रो रिक्शा लेकर चल दिया एग्जाम सेंटर की ओर |
 

यूनिवर्सिटी के अंदर का नज़ारा काफी अच्छा था| अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर, हरियाली और बड़ा सा सर सय्यद गेट | फिर पहुंचे सेंटर और बैठ गए परीक्षा देने पर हाल तो वही गुज़रा जो हर परीक्षा में था | तीन घंटे बाद निकला और वापसी का इरादा किया | परीक्षा कुछ ख़ास नहीं गयी थी इसलिए घूमने का मन बिलकुल नहीं था और मुझे ट्रैन की वापसी का टाइम भी नहीं मालूम था | स्टेशन पहुँचने पर पता चला ट्रैन रात को ९ बजे है अब आठ घण्टे कौन इंतज़ार करता तो क्या था बस स्टेशन गया पर पता चला की सिर्फ एक ही बस जाती है वो भी मुरादाबाद  तक जो की लगभग पूरी भर चुकी थी अब जाना तो था ही तो चढ़ गया और इंतज़ार करने लगा सीट मिलने का | कुछ घंटे बाद सीट मिली | अभी ५ घंटे का सफर बाकि था लेकिन मेरी हालत ख़राब होने लगी | बता दू की मुझसे बस में ज्यादा सफर नहीं होता | कुछ  ही देर गुज़री थी की मुझे उल्टियां आने लगी किसी तरह खुद को संभाला और सो गया | ४ घंटे बाद जब मेरी आँख खुली तो मुरादाबाद पहुचने वाले थे पर मुझसे उठा भी नहीं जा रहा था और अभी मुरादाबाद से नजीबाबाद तक ३ घंटे का सफर और करना था | मुरादाबाद बस स्टेशन पहुचते ही मुझे देहरादून के लिए बस जाती हुई दिखी | मैं चलती बस से ही उतरा और खस्ता हालत में ही उसका पीछा करने लगा |मैं किसी तरह उसमे चढ़ा और एक टिकट लेकर पीछे वाली सीट पकड़ ली | मेरी तबियत इतनी ख़राब हो चुकी थी की मुझे ये तक नहीं मालूम हुआ की टिकेट कितने का खरीदा|  सीट पर गया और बेबाक होकर सो गया | समय कब गुज़रा पता ही नहीं चला और एक ज़ोर के झटके से मेरी आँख खुली | पीछे बस में कुछ ज्यादा ही झटके लगते है ये मुझे अनुभव हो चूका था और इतना सोने के बाद नींद का नामो निशान तक नहीं था | मैं अँधेरे में बाहर देखता जा रहा था तभी मेरी नज़र एक चमकीले नाम बोर्ड पर पड़ी जहाँ "अलीगढ" लिखा हुआ था | ये देखना था की मेरी आँखे बड़ी हो गयी  मानो फट जायँगी | मेरी तो जान ही निकल गयी थी | मुझे अपनी आँखों पर विश्वास  ही नहीं हो रहा था | मैं पागलो की तरह इधर उधर झांक रहा था की मेरी आँखे गलत साबित हो जाये | मुझे बाकि सवारी घूरने लगी | मैं जल्दी से कंडक्टर के पास गया और पुछा कोनसा शहर आने वाला है तो वो बोला नगीना | नगीना पर अभी तो मैंने अलीगढ का बोर्ड देखा मैंने हांफते हुए पुछा | तो वो बोला वो अलीगढ गाँव था| ओहहहहहहह! मैंने चैन की सांस ली और अपने ऊपर ज़ोर से हंसने लगा | मैं शुक्र मना रहा था की वो अलीगढ शहर नहीं बल्कि मेरे नजीबाबाद से कुछ दूर एक अलीगढ गाँव है | मेरी हंसी ने मेरी ख़राब तबियत बदल दी | 

अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मेरा सिलेक्शन तो हुआ नहीं था पर आज जब भी वो सफर याद करता हु तो मेरी हंसी नहीं रुकती ||

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