लड़की, पहाड़ और भेड़ें

वे बारिश के दिन थे. किसी स्वप्न सी खूबसूरत वादियाँ  नीले-धुंधले  काँच सा आसमान …उँचे धूसर बादलों को हाथ उठाकर छूने वाली हिमाच्छादित चोटियाँ…..

वह  उदास-सी लड़की….मायूस ….मुरझाई हुई …किसी सुंदर कली-सी ….जो किसी बुरे स्वप्न  को देखकर  अचानक से जाग गयी हो. कोमल –कमसिन से उम्र पर मानो कोई पहाड़ टूट पड़ा हो. नयन-दीपों में  टिमटिमाती सी लौ को घेरे हुए घोर उदासी का मटमैला धुआँ .

वा ..पहाड़ के एक छोर पर बैठी   है. नीचे हज़ारों   फीट की खाई हैं. ऐसी निर्भयता से कगार पर बैठ कर  …..मानो मृत्यु  को आवाज़ लगा रही हो.

उसने पीले रंग का सुंदर सा ड्रेस  पहन रखा  हैं. जो अब से कुछ देर बाद शायद ..लाल धब्बों से भर जाए. दूर ... घाटी… में   हल्के पीले रंग की नदी फूलों से भरी हुई है .

उसकी आँखों में चन्द आँसू  थे …जो नीचे घाटी में बहती पहाड़ी नदी के रंग से बिल्कुल  मेल नहीं  खाते थे.

चारों तरफ ..दिव्य-शांति थी ...केवल कुदरती आवाज़ें थी …समय की तरह अनवरत बहनेवाले हंस-पंखी रंग के निर्झरों का  जल्तरंग…पहाड़ी हवा की  बाँसुरी …पेड़ों  के पत्तों की सरसराहट  का अरण्य- सितार  और बीच बीच में विहंगों  की तार शहनाई…….

दूर  किसी पहाड़ी चरवाहे की  पुकार .  किसी लौटते चरवाहे का मवेशी को “ हुड हुड  “ करता मद्ध्म और तेज़ होते स्वर.

वह  कोई 16-17 वर्ष  की शहरी  लड़की थी …..जिसने अपने जीवन को एक स्पंज सा मान लिया हैं …जिसे अब जब भी निचोड़ा जाए तो आँसू ही निकलेंगे.

वह  लड़की …जिसका हाल में ही "ब्रेक अप"  हुआ था . …..वह  किशोरावस्था के आकर्षण को  सच्चा  प्रेम कहकर …..किसी दूसरे की ग़लती की सज़ा खुद को देने जा रही हैं.

उसने आने से पहले ….अपना फेसबुक अकाउंट डीलिट  कर दिया था . उसने फोन का अपना सिम तोड़ डाला था .  

उसे केवल वह लड़का ….और उसके साथ बिताए ….रेशमी और खूबसूरत लम्हें याद आ रहे थे ….जो भीगे थे ….मगर हृदय को जला रहे थे . दुखभरे दिन में सुखभरे दिनों की स्मृतियाँ….किसी  ईर्ष्यालु सहेली के उलाहने की तरह लगते हैं.

वह ….जान से ज़्यादा चाहने वाले अपने  पापा को ….अपनी  बेस्ट फ्रेंड सी ममा को …अपने प्यारे छोटे भाई को याद नहीं करना चाह रही थी …….उन्हे याद करेगी तो वह कमजोर पड़ जाएगी  ..सैकड़ो फुट नीचे नहीं कूद पाएगी ….हर साल धूमधाम से अपनी फूल सी बेटी का बर्थडे  मानने वाले पापा….को याद कर के  वह  और रोना नहीं चाहती. ..यह छलाँग …वह सोचती हैं…सारी पीड़ा का….सारे दुखते ज़ख़्मों का अंत कर देगी.  

तभी पीछे से उसे एक  तेज़ आवाज़ सुनाई देती हैं. कोई उसे पुकार रहा था . वह पीछे देखती हैं. एक पहाड़ी औरत   उसे आवाज़ दे रही थी .वह पहाड़ी  गढ़वाली औरत स्थानीय वेश-भूषा  में बड़ी ही खूबसूरत लग रही थी  …जैसे उसने इससे पहले इतनी सुंदर औरत देखी नहीं हो.…वह पहाड़ी औरत जो अपने  उजले भूरे भेड़ों के साथ थी .

उसने उँची आवाज़ में कहाँ , “ क्यों मरने जा रही हो? “

वह  चुप रही.

“ समझ गयी ;  मोहब्बत का मामला हैं."

उसे आश्चर्य हुआ कि उसे कैसे पता चल गया.   शायद ….उसका अनुभव उसे सारी बातों को बिना बोले समझने में मदद कर रहा हो.

वह औरत अपने दोनो हाथ फैलाकर बोली  “  ज़रा …चारों ओर नज़र घुमा कर देखो…कुदरत के सातों रंग और सातों सुर….कितनी सुंदर हैं दुनिया ….कितना अनमोल हैं जीवन.  अपने माँ..बाप के बारे में सोचो   क्या यह सब तुम्हारे नादान प्यार से कम कीमती हैं.”

उस  लड़की ने कहा ……” मगर.मेरे जीवन की कहानी ख़त्म हो चुकीहै ” उस लड़की ने आँसू पर  नियंत्रण करते हुए कहा…मगर आँसू  भरे प्याले के द्रव की तरह छलक  आए .

तुम तो मेरे भेड़ों से भी  गयी गुज़री  हो. मेरी भेड़ें ….इतना उँचा पहाड़ रोज चढ़ती  हैं ….रोज जीवन के लिए संघर्ष करती हैं.  कई बार खड़ी चट्टान से गिरती भी हैं …..मगर  मैंने  आज तक  किसी भेड़ को ख़ुदकुशी करते नहीं देखा.

तुम बहुत कमसिन और खूबसूरत हो ….और पढ़ी-लिखी भी दिखती हो. ठीक हैं जाओ , कूद मरो. मगर ….मैं चाहती हूँ….तुम अगले जन्‍म में भेड़ बनना …और मेरे घर आना .देखना धरती और जीवन कितने  सुंदर  हैं. मैं तुम्हे ….तब पूरे पहाड़ों की सैर कराऊँगी . तुम्हें  ….मौसमों के बारे में बताऊँगी….तुम्हें बर्फ पर चढ़ना  सिखाऊँगी…..धूप उगने से बाद  और धूप ढलने से पहले  ….जल्दी से घर पहुँचने के रोमांच भरे  रास्ते बताऊँगी .

पहाड़ी वनस्पतियों के बारे में बताऊँगी….दो पहाड़ो के बीच ….रंगीन…इन्द्रधनुष का झूला दिखाऊँगी. सर्दियों में स्वर्ग -सी सफेद हो जाती है यह पूरी वादी ….और सारी पहाड़ी नदियाँ …काँच की सतह  क़ी तरह हो जाती हैं.

हिमतेन्दुओं  और भालुओं  से तुम्हें बचना सिखाऊँगी . देखो यह मेरी सबसे छोटी भेड़ …कल ही एक  तेंदुए को चकमा देकर भागी थी.

मैं पहाड़ियों का "झुमैला तथा झोड़ा"  नाच दिखाऊँगी. दशहरे का बड़ा मेला दिखाऊँगी . मिट्टी के डीकरे ( मूर्तियाँ ) बनाना सिखाऊँगी  ….अगर तुम मेरे घर चलती तो …..सिसौंण का साग ,आलू टमाटर का झोल खिलाती.

बर्फ पिघलने के बाद घाटी   हज़ारों प्रकार के फूलों से भर जाती हैं …जिसने कभी एक साथ इतने फूल नहीं देखे हैं ….उनकी आँखे तो फटी की फटी रह जाती हैं. बैगनी रंग का वह फूल भी  दिखाऊँगी… जो इंसान के दिल की तरह दिखता है और जिसे तोडो तो उसमे से  पानी की बूंदे फूटती हैं ….मानो …उसके आँसू हो.

वह फूल भी दिखाऊँगी …जो देखने में एकदम ….इंद्रलोक  के नंदनवन के पुष्प सा सुंदर होता है…मगर उतना ही ज़हरीला भी ….पहले के जमाने में  जिससे शत्रुता  निकालनी होती थी ..इस पुष्प की माला को सावधानी से गूँथकर  …..भेंट  किया जाता    था …जिससे कुछ ही घंटो में उसकी मौत हो जाए.

 

वैसे तुम्हारे मरने के विकल्प के रूप में ज़हरीले फूल वाला उपाय भी  अच्छा  होता …मगर अभी उसे खिलने  में वक़्त हैं और तुम्हारे पास तो इतना समय नहीं हैं.

 

अभी तुम मरने की जल्दी में हो. …..लेकिन सुनो हमारे इस निर्मल वातावरण वाले इलाक़े में …..उँची चोटियों वाले ….इस स्वर्ग में ….तुम्हारी लाश ….का  क्या होगा …पता हैं.   यहाँ जीवन से हारे हुए ….ख़ुदकुशी करने वालों की ….देह को कोई  हिंसक जानवर तक नही ख़ाता . वे जानवर भी अपने हौसलों और साहस से किए गये शिकार से ही पेट भरते हैं.

हमारे यहाँ की पहाड़ी छोरिया  भी प्यार करती हैं. मगर किसी निगोडे के विश्वासघात में कूद नहीं मरती . वे गा-नाच कर अपना दुख ख़त्म कर लेती हैं.फिर नया जीवन शुरू करती है.

यहाँ …एक प्रेमी से भी सुंदर दुनिया हैं …फिर एक  फरेबी प्रेमी के लिए क्यों इस खूबसूरत सी दुनिया को छोड़ी जाए……वैसे …तुम पढ़े लिखे बड़े घरों की छोरिया …शायद ऐसा करती हो…हमारे यहाँ….ऐसा कोई  रिवाज नहीं. प्रेम निभाना हैं तो जीवन भर …नहीं निभाना हैं तो …दोनो आज़ाद ….कोई जग-हंसाई  नहीं…..कोई कटुता या मैलापन नहीं….मेरी माँ ने भी दो शादियाँ की थी ….उसका पहला पति …..मैदानों में कमाने गया …तो लौटा नहीं……वहीं कहीं दूसरा विवाह कर लिया . मेरी माँ ने ….हँसी खुशी ….अपनी भी नयी दुनिया बसा ली . फिर मैं पैदा हुई .   आज वह  आज 60 साल की है ….अगर वह  भी….पहाड़ से कूदकर जान दे देती तो मैं कहाँ से आती .

मायूस लड़की के चेहरे की रंगत बदलने लगी  …उपर आसमान पर   काले बादल का एक टुकड़ा भी पश्चिम  की तरफ सरक रहा था . बदली छँटने लगे  थे. वह सुन रही थी . “ तुम्हारा नाम क्या हैं……” उस लड़की ने पूछा.”

“ अब जब तुम ….जान देने जा रही हो तो ….एक अजनबी सहेली का नाम जानकर क्या करोगी….भेड़ बनकर मेरे घर आना ..तो हम …दूसरी दोस्ती की शुरुआत करेंगे. वैसे मैं जाते जाते आख़िरी बात कहना चाहती हूँ…अगर कोई तुम्हें छोड़ कर  चला जाता हैं तो यह ….तुम्हारी जीवन-कथा का अंत नहीं है …बल्कि यह तुम्हारे जीवन की कहानी से उसका अंत है….यानि …उसका रोल इस कहानी में इतना ही  था …..लेकिन कहानी उसके बाद भी जारी रहनी चाहिए. ”

अच्छा  तो मैं चलती हूँ…मुझे नीचे उतरना हैं…भेड़ों के साथ .तुम्हे तो उपर जाना है. अलविदा .

वह परी- सी औरत ….देवदार के पेड़ों  के पार …नीचे की ओर  नागिन से पहाड़ी रास्ते पर दूर जाती दिखाई दी…..लगा जैसे  कोहरे में धूप का एक चमकता हुआ गोला नीचे उतरता जा रहा हो.

लड़की ..पहाड़ी पुष्प की तरह खिल उठी थी…जैसे फूलों वाला मौसम समय के पहले आ गया हो.देवदार के पेड़ों की तरह …उसके भीतर ….विपरीत मौसम में भी टीके रहने की जिजीविषा  पैदा हो गयी थी  ….और उसके हृदय शिखर से( जो अवसाद की कालिमा से ढकी थी)वहाँ सिंदूरी सूर्य उदित हो रहा था.

जीवन का बुझता हुआ दीप पुन: जल उठा था . अब उसके मन में बीते कल का तनिक मलाल ना था. जीवन …फरेबी प्रेमी से अधिक मूल्यवान हैं ….. लौटते हुए …एक पहाड़ी बूढ़ा मिला …..जो ढेर सारी मालाएँ  और लंबा सा लबादा पहने हुए था.

“ बाबा ….अभी जो औरत ..नीचे भेड़ों के साथ उतरी वह कौन थी. “

बूढ़े ने बड़े ही अजीब तरह से देखते हुए कहा , “ कौन सी औरत ?”

उस लड़की ने  उसका हुलिया बताया.

वह एक लामा की तरह  दो बार धरती पर झुका ….और उपर आसमान की ओर देखकर बुदबुदाया ,” वह कोई वन-देवी रही होगी.”  क्या उसकी परछाई दिख  रही थी .

लड़की कुछ याद करते हुए  काँपते हुए बोली,”  नहीं कोई  परछाई नहीं थी ?”

वह समझ चुकी थी  की वह  एक खूबसूरत हृदय वाली  पहाड़ी  परी थी जो अपने भेड़ों के साथ उसे जीवन –संदेश सुनने आई थी.

 

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