बँटवारा

दिनेश एक किसान था । दिनेश के पास सात बिगहे की खेती थी, जिससे वो अपने परिवार का पालन-पोषण किया करता था । परिवार छोटा होने की वजह से जयादा तंगी का सामना नहीं करना पड़ता था दिनेश को,। सात बिगहे की खेती में इतने अनाज उपज जाते थे जिससे दिनेश अपने परिवार को दो वक़्त का खाना और पहनने के कपड़ो का इंतज़ाम कर लेता था । दिनेश की आमदनी इतनी भी नहीं थी की वो अपने दोनों लड़को को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सके इसलिए दिनेश के दोनों बच्चे गांव की सरकारी स्कूल में हीं पढ़ने जाते थे । गांव के स्कूल में पढाई अच्छी नहीं होती थी, कभी बच्चे नहीं जुट पाते थे स्कूल में तो कभी मास्टरजी महीनो तक स्कूल नहीं आते थे । ये हाल देखकर दिनेश ने अपने दोनों बच्चों की पढाई छोड़वा दी और उनको अपने साथ खेती में इस्तेमाल करने लगा । दिनेश ऐसा चाहता तो नहीं था पर वो मजबूर था ,क्यूंकि उसकी भी उम्र हो गई थी और अब वो खेती करते-करते थक जाता था । इस वजह से दिनेश ने अपने दोनों बच्चों को खेती के लिए अपने साथ रख लिया था । दिनेश अपने गांव का बहुत लोकप्रिय व्यक्ति था, अपने आचरण और अच्छे स्वाभाव की वजह से । लोग दिनेश का बहुत आदर भी किया करते थे । कभी-कभी रात में खाने के दौरान दिनेश अपने दोनों बच्चों को सामाजिक शिक्षा दिया करता था । जैसे कभी दोनों भाई आपस में मत लड़ना , अपने ज़मीन पर दोनों भाई मन लगा कर खेती करना जिससे फसल अच्छे हों और जीवन शांतिपूर्ण तरीके से चला सको । दिनेश अपने दोनों बच्चों को शिक्षा दिया करता की यही खेती तुम दोनों की पूंजी है, इस खेती को कभी बेचना मत, इस खेती को बढ़ाने की कोशिश करना पर कभी इसको कम मत करना । दिनेश अपने बच्चों को बताता की कैसे उसने अपने पिता की दी हुई अमानत को बचाया । दिनेश बहुत सारी बाते सुनाता अपने बच्चों को सिर्फ यही समझने के लिए की हम किसानो के लिए खेती से बढ़कर दूसरा कोई चीज़ मायने नहीं रखता है, इसलिए अपने खेत को जैसे भी हो बचा कर रखना चाहिए, उसको बढ़ाने के लिए मेहनत करना चाहिए पर कभी अपने खेती को बेचने और कम करने का नहीं सोचना चाहिए । दोनों बच्चे भी बड़े हो गए थे और समझदार भी हो गए थे,बड़े लड़के की उम्र २१ वर्ष थी तो छोटे लड़के की उम्र १८ वर्ष थी ।
 

विवाह का मौसम चल रहा था। एक शादी का आमंत्रण आया था दिनेश के किसी रिस्तेदार के यहाँ से । शाम को दिनेश जब खेत से घर आया तब खाने के समय दिनेश की पत्नी ने दिनेश को आमंत्रण के बारे में बताया । दिनेश जाना नहीं चाहता था पर अपनी पत्नी की जिद की वजह से दिनेश शादी में जाने के लिए राज़ी हो गया । अगले दिन सुबह दिनेश अपना साइकिल ले कर घर से शादी में जाने के लिए रवाना हो गया । कुछ दूर जाने के पश्चात ही रास्ते में एक ट्रक से धक्का लग जाने की वजह से दिनेश की आपातकाल स्तिथि में मौत हो गई । खबर गांव तक पहुंची और पूरा गांव और दिनेश का परिवार मातम में डूब गया । इस दुर्घटना का सबसे जयादा असर दिनेश की पत्नी को हुआ, वो थोड़ा अपना मानसिक संतुलन खो बैठी । उसको लगता का उसकी जिद की वजह से ही दिनेश की मौत हो गई । अपने पति के मरने के सदमे को को जयादा दिन तक सहन नहीं कर पाई और वो भी फांसी लगाकर मर गई । एक साल के अंदर हीं दो- दो मौत हो जाने से पूरा परिवार मानो ख़त्म हो गया था । कुछेक दिनेश के रिश्तेदारों के कहने पर दिनेश के बड़े लड़के की शादी करवा दी गई । कुछ दिन बाद छोटे लड़के की भी शादी हो गई ।दोनों भाइयो ने शादी करके अपने गमो को भुलाया और तीन-चार सालो तक सब ऐसे हीं चलता रहा ।
 

दोनों भाई एक ही घर में एक साथ ही रहते थे । दोनों की पत्नियां आपस में छोटी-छोटी बातों को लेकर लड़ने लगी थी । दोनों की पत्नियां अब एक साथ नहीं रहना चाहती थी । रोज़-रोज़ के झगड़ो से तंग आकर दोनों भाइयो ने आपस में बात की । दोनों भाइयो को अपने पिता की दी हुई शिक्षा याद नहीं थी पर दोनों भाइयों पर अपनी-अपनी पत्नियों का असर पूरा था । दोनों की पत्नियों को अलग होकर बड़ा बनने की ख्वाहिश थी, अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर,डॉक्टर बनाने की ख्वाहिश थी । दोनों की पत्नियां सोचती की बंटवारा कर के अलग हो जाने से हमारा धन बढ़ जायेगा, अकेले रहने से खर्च भी कम होंगे । इन बातो के असर की वजह से दोनों भाइयो में आपसी समझौता नहीं हो पाया और दोनों ने पंच बुलाकर बंटवारा कर लिया ।दोनों ने सभी चीज़े आधी-आधी बाँटी जैसे घर, जमीन, दुकान । सब चीज़ों पर आधा-आधा हक़ लेकर दोनों ने अपना पूरा-पूरा हिस्सा बना लिया । बँटवारे के कुछ दिन बीत जाने तक दोनों की पत्नियां बहुत खुश रहती थी, दोनों भाई भी खुश रहते थे । पर ये खुशी जयादा दिन तक नहीं रह पाई ,दोनों भाइयों को कष्ट होने लगा ,पूरा -पूरा दिन उनका खेत में कट जाता। उनकी पत्नियों का भी पूरा दिन फसल के मौसम के समय खाना बनाने और अपने-अपने पतियों को खेत में खाना -पानी पहुंचने में ही बीत जाता था । दोनों लोग अपने-अपने बच्चों पर ध्यान कम दे पाते थे । खेती में आमदनी भी उनकी कम होती पहले के मुकाबले और मेहनत भी दोनों पूरा-पूरा दिन करते । इन सब चीज़ो से जब परेशान हो जाते , तब दोनों भाइयों के मन में ये बात उठती के बँटवारे से अच्छा पहले हीं था जब दोनों भाई मिलकर काम किया करते थे । दोनों भाई मिलकर आधा-आधा वक़्त काम किया करते थे और आमदनी भी इतनी हो जाती की दोनों अपने बच्चों को पढ़ा पाते थे ।अब तो सारा कमाई खाने में ही ख़त्म हो जाता था ।दोनों भाइयों के मन में बंटवारे का मलाल था , पर दोनों भाई कभी इस बात पर एक-दूसरे से बात नहीं कर पाते थे ।गांव के दूसरे लोगो से बात करते अपने कष्ट के बारे में पर खुद से नहीं ।
 

एक दिन शाम को एक सज़्ज़न और पढ़े-लिखे व्यक्ति से बड़ा भाई बात कर रहा था और बँटवारे से हो रहे कष्टों का जिक्र कर रहा था । बात सुनने के बाद सज्जन व्यक्ति ने जवाब दिया की बंटवारे में बाप का जायदाद और ज़मीन नहीं बटता है ,बँटते हैं दो भाई ,बँटती है बाप की इच्छाएं, बँटती हैं माँ के सपने,बंटता है भाइयों का प्यार । सज़्ज़न व्यक्ति की बात सुन कर बड़े भाई को बहुत बुरा लगा और वो बहुत सर्मिंदगी महसूस कर रहा था पर वो कुछ कर नहीं सकता था । अब उसे अपने पिता की बात भी याद आ रही थी , वो अपने पिता को याद कर रहा था । अब वो बँटवारे की छन भर की खुशी को भी समझ गया था और बंटवारे से होने वाले दुःख से भी वाक़िफ़ था । अब कभी गांव में कोई उससे बंटवारे की सलाह माँगा करता तो वो उसे बँटवारा न करने की सलाह दिया करता ।

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