सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
सन् 1896 की बसंत पंचमी के दिन जन्मे महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ पर माँ सरस्वती का विशेष आशीर्वाद था। आपके जन्म की तिथि को लेकर अनेक मत प्रचलित हैं। एक बड़ा वर्ग मानता है कि संवत् 1955 में माघ शुक्ल एकादशी अर्थात् 21 फरवरी सन् 1896 आपकी जन्मतिथि है। निराला जी के कहानी संग्रह ‘लिली’ में आपकी जन्मतिथि 21 फरवरी 1896 ही अंकित है। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा 1930 में प्रारंभ हुई।
आपके पिता पंडित रामसहाय तिवारी उन्नाव के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। ‘निराला’ जी की औपचारिक शिक्षा हाईस्कूल तक हुई। तदोपरांत हिन्दी, संस्कृत तथा बांग्ला का अध्ययन आपने स्वतंत्र रूप से स्वयं किया। तीन वर्ष की छोटी सी आयु में अपनी माता को खो देने के बाद संघर्षों में बचपन बिताया और कैशोर्य लांघते-लांघते पिता भी आपका साथ छोड़ संसार से विदा ले गए। अब अपने बच्चों के साथ-साथ पूरे संयुक्त परिवार का उत्तरदायित्व आपके कंधों पर आ पड़ा।
प्रथम विश्वयुध्द के बाद जो महामारी फैली उसमें आपने अपनी पत्नी मनोहरा देवी, चाचा, भाई तथा भाभी को गँवा दिया। कठिनतम परिस्थितियों में भी आपने जीवन से समझौता न कर, अपने तरीक़े से ही ज़िन्दगी जीना बेहतर समझा। इलाहाबाद शहर आपसे लम्बे समय तक सुशोभित होता रहा। इसी शहर के दारागंज मुहल्ले में रायसाहब के कमरे के पीछे बने कमरे में दिनाँक 15 अक्टूबर 1961 को महाप्राण, ये देह त्याग कर चले गए।
महाप्राण 'निराला' हिन्दी साहित्य के एक ऐसे सूर्य हैं जिसका आलोक सदैव हिन्दी जगत् को प्रकाशवान करता रहेगा।
‘अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘द्वितीय अनामिका’, ‘तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’, ‘गीत कुंज’, ‘सांध्य काकली’ और ‘अपरा’ आपके काव्य-संग्रह हैं। ‘अप्सरा’, ‘अल्का’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’, ‘कुल्ली भाट’ और ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आपके उपन्यास हैं। ‘लिली’, ‘चतुरी चमार’, ‘सुकुल की बीवी’, ‘सखी’ और ‘देवी’ नामक संग्रहों में आपकी कहानियाँ संकलित हैं। इसके अतिरिक्त आपने निबंध भी लिखे जो ‘रवीन्द्र कविता कानन’, ‘प्रबंध पद्म’, ‘प्रबंध प्रतिमा’, ‘चाबुक’, ‘चयन’ और ‘संग्रह’ नाम से प्रकाशित हुए। इतना ही नहीं पुराण कथा तथा अनुवाद के क्षेत्र में भी आपने महती कार्य किया है। दर्जन भर से अधिक महत्वपूर्ण ग्रंथों का आपने हिन्दी में अनुवाद किया।
परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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