मन उपवन  डॉ मधु त्रिवेदी

मन उपवन

डॉ मधु त्रिवेदी

मन उपवन तेरा चंचल चित
मेरा तन मन सागर सिन्धु नित
अमिट मिट परछाई हृदय शीत ।

प्रणय निवेदन है सब कुछ तर्पण
मन विच्छेदन है सब कुछ अर्पण
इस काया तन से है अति प्रेम
तुम स्पन्दन नित विकल श्वासों ।

रात निशा की अचेतनता मन्द तुम
बन्दअधरों की मधुर मुस्कान तुम
कामदेव कीप्रानप्रिया रति तुम
अंग भेदन अंग छेदन तलबार तुम ।

करू निवेदन सुवेदन चरण वन्दन
प्रातःकाल की चरण वन्दना प्रभो
बन मीरा के कृष्ण प्रिय तुम
सब कुछ कर दू प्रभो मै अर्पन ।

जीत मेरी नही तेरे मृदु बन्धन की
हार प्रणय निवेदन के आवेदन की

करूँ मै दिनरात चंचल अर्चन मैं ।

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